हाची वात नी वाट मअें

फूल नै कांटा पड़्या मलें

करे’क हेंडी पड़्या तौ

पोग मयं

अैनो दरद वेंटी

टपकी पड़ें आंखं थकी आंहुवं

मुंड़े थकी पीवू पड़े

जमारा नुं ज्हैर

तो, तो सुकरात बणी जीवाये

पण जो भागी पड़्या

पेली लाकड़ी जू

टप-टप

करवा लागी ग्या

पेला टपका वजू

तौ घणा वैगरा रई जो

पेला होना ना मेहलं थकी

घणां तूफान आवें

घणं वादरं

तारी अणी वात

अगाड़ी आवें

अणा’ज खोल मअें

अेकला पड़ी हेंडवू पड़े

घणां ज्हैरीला सबद

अणा आंगणां मअें पीवा पड़ें

तौ, तौ नीलकंठ बणी सको

राखो टेको

टनयाय नी दिसा बदलो

हाथ मअें उगी आवे

काल नुं होनेरी भविस्य

नक्की है

जीवो तौ सूली माथे लटकवू पड़े

ईसा मसीह बणी।

स्रोत
  • पोथी : अपरंच ,
  • सिरजक : राजेश राज ,
  • संपादक : गौतम अरोड़ा ,
  • प्रकाशक : अपरंच प्रकाशन
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