बै मिनख

झुळसती हुळसती

तवा सरीखी तपन री

बळबळती तावड़ा री लाय मांय

लोह्वो पीटै है।

अर थां!

बंद कमरां मांय

वो आपरो हिवड़ो पीट रैयो है।

बै चलावै है

हंसिया, कुदाली, दांतळी

छैणी पै हथौड़ो, कै घण

लुगाया धोंकणी सूं पंखी मांय

बायरो देवै है।

बुझ्योड़ा अंगारां नैं।

जदी सांझ पड़्यां

रोटी सागै कांदा-लसण री चटणी

टमाटर अर हरी मिरच रो साग

बणायनै खावै

अर अपणी मौज-मस्ती सूं

सूय जावै चैन री नींद

हेटै गाड़ी पै रैवै बींदणीं अर बींद।

सगळी अबखायां मांय भी

कतरा नचीता

जीवै मस्ती री अपणी जिंदगी।

अर आपां पाळ रिया हां

आखै जगत रै चिंता री गंदगी।

आपणैं कनै सगळा सुखां री

हुवै है शैय्या।

डूंगर जतरा रिपिया

पण फेरूं भी चिंता सतावै भय्या।

पण क्यूं! पण क्यूं?

कतरा खुसनसीब है

बै गाडिया लौहार।

जका बणावै लोह्वा रा औजार।

बै तारां छाई रात में

खूंटी तांण चैन री नींद सोवैं हैं।

कांच रा म्हैलां में रैवण वाळा

अेकला रोवैं हैं।

म्है पूछ्यो भई क्यू! क्यू?

पड़ूत्तर नीं मिल्यो।

नौ गज री लौहार री गाडी

जिण में राजी रैवै लाडा-लाडी।

हां सांच पूछो तो

अै घणां खुसनसीब हुवै है।

जिंदगी री मोजड़ली

इणां रै करीब हुवै है।

मान्यो कै अै घणां गरीब है।

पण फेरूं भी आपां सूं खुसनसीब है।

आपणां जस्या सूं

घणा ई’ज व्हैला, घणा ई’ज व्हैला।

स्रोत
  • पोथी : बिणजारो 2017 ,
  • सिरजक : श्यामसुन्दर टेलर ,
  • संपादक : नागराज शर्मा ,
  • प्रकाशक : बिणजारो प्रकाशन पिलानी ,
  • संस्करण : अङतीसवां
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