घणी ई ल्हासां देखी इण मुलक में म्हैं,
ल्हास दीठ दैखी मिनखां री टोली
ल्हास नै जेज्वावतां,
मुड़दे रै सागै मानखां री भीड़
गांव में भाळी ही म्हैं
पण अब के देखी नुंईं बात
लूंठे स्हैर मांय
सभ्यतावां री चढ़ाण में
मिनख बणाणे रो कारखानो है जठै
ल्हासां ई ल्हासां
ल्हासां री बेसुमार भीड़’र
ल्हासां में फस्योड़ो मिनख
लुकावणो चावतौ हो खुद न
कोई घुरी मांय बो
पण रैय नीं सक्यो छानी
क्यूं कै मिनख नै ल्हासां टोळती ही बठै
जिन्दगानी री नांव नीं हो
नीं हो लीलाड़ में पळको बठै
बठै मिनख में मौत री ठोड़ दीसै
मेळजोळ-प्रेमभाव री झलक ही कोनी
अर नीं करण री लाय
बै रोवण्यां, मरण्यां’र उतरयेडे मूंडे रा
ठूंठ व्हैगा है,
अर व्हैगा तूए रा काळूंस क
नीं काढ़े नेणां में काजळ रौ ई काम
कैवे है पढाई’र भणाई
मानखां नै मिनख बाणावे
दो सूं आंख्यां व्है ज्यावै च्यार
पिछाण’ण लागै काळा आखरां रौ अरथ बौ
पण बूर देवे संस्कारां रा खोज
बडो कर हिड़दे रौ चानणों
व्है ज्यावै आंधो, कोरो आंधो
पण नीं दे सके उपदेस
बण सूरदास
अर नीं कैय सकै—
‘दे उणरौ ई भलो
नीं दे उणरौ ई भलो’
अेड़ी आंधी ल्हास ल्हास सूं ई भूंडी
क नीं सुबाणे मौत रै पसवाड़ै
अर नीं राखै जीवंतो मिनख नैं
अबै ऊबो उडीकूं हूं म्हैं
उण भाग री घड़ी नै क-
कद ल्हास नै मिनखां री टोळी ले ज्यावै
कद निकळे मिनख बारै ल्हासां सूं।