उतावेर वद्तीस जई रई हती

देक्यू कमाड़ ना पोला में

हामरयू ,पण

तडक्या कमाड मय थकी

आव्यो ने कोई भी

कागद्।

देको मारी कैवी

पड़ी गई है आदत

रोज़ दाड़े वाड़ जुऊँ

कईयाक् खास कागद नी

पण कईया फिराक में भटक्यू

मारू मन

गांगडा पाडे, रूऐ

वेली थकी हाँज हूदी जुऐ वाड़

नै देखतं देखतं मएं

बावसी पासा आतमी नएं

आवतै काल

फिरी उगी आब्बा ना

आश्वासन हातै।

स्रोत
  • पोथी : वागड़ अंचल री राजस्थानी कवितावां ,
  • सिरजक : महेश देव भट्ट ,
  • संपादक : ज्योतिपुंज ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादनी बीकानेर ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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