अठै आप री लड़ाई

आप लड़नी पड़ै

आपरा आवै ना पराया

जूण री जंग मांय

मूंडै मीठी गोळी,

कांधै माथै बंदूक

राखणी पड़ै।

लारै सूं चक्कू

पतो नीं कुण मार देवै

दुसमी रै साथै

भायलै री खबर राखणी पड़ै।

सजा दैवण नै तैयार बैठ्या है

जका आप दोसी है

ईं खातर

खुद री वकालत,

खुद री जमानत

खुद देवणी पड़ै।

बेदाग है बै

जका जुल्मी है।

जीतण सारू

केई बार

खूंद सूं आंगळ्यां

रंगणी पड़ै।

स्रोत
  • सिरजक : मनोज पुरोहित ‘अनंत’ ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
जुड़्योड़ा विसै