म्हारी मनस्या री धरती पर
इसो कण भी तो नहीं कठै ही
कै हूं चुनाव लडूं
अर दे-दे झांसा दुनियां नै
बण बेटो लोगां रो
जिंयां-तिंयां जोड़-तोड़ कर
कुर्सी एकर कब्जै करूं।
फेर बणूं ढेंकळी
उळीच-उळीच माया रो पाणी
ठूंस-ठूंस
भरूं तिजूरी सैंठी।
मिलज्यावै एकर मौको
तो पग पीढ्यां रा बांधूं
सूंत-सूंत
पूंजी ईं धरती री
अणदेखी कर सींव देस री
स्वीस बैंक में जमा करूं।
रैवण सारू
लम्बो-चौड़ो प्लाट खरीदूं
अर करूं खड़ी
आभो छूंती
कोठी कोई करामाती कळाकुंज-सी
का बंगलो कोई जबरजंग
आखी जगती सूं न्यारो
आगै मुळकै बीरै
दरी—हरी दूब री।
धूमण-फिरण नै कार
सागै हाजरिया दो-च्यार
डावै पासै कनक छड़ी-सी
कामण बैठै
नैण सीपट्यां ढोळै प्यार।
इसी कल्पना खेती
म्हारै मनड़ै
भरी जवानी में भी
कदे न सोची
कदे न कीन्हीं।
कात्यो नहीं कातण गाळै
तो अब कितोक कातूं
गयै सियाळै?
सिर पर बैठा
भंवरा उडग्या कद रा
अबै दिन-रात बठै ही
बुगला बैठा नैहचै सूं
जाम्यां रो धणियाप जचायै
आराम करै सुस्तावै
दिन में आवै झेरी
आंख्यां रै खूंणा
जमै गीड री परतां पीळी।
बिना पून ही दांत हिलै
चश्मै बिना
घोळै दिन रा पाट मिलै।
जे लड़ग्यो पाणी थोड़ो-सो
तो नास झरै अर डील कुळै।
एक फलकियो कंवळो-सो
बो ही लूखो
चिकणास मना कियोड़ो।
का कुड़छी-दो कुड़छी
रंधीण खीचड़ी कंवळी
सागै कड्ढी एक नारळी,
मंचली कोई धणीं पुराणी
बीं पर गूदड़ती लट्ठै री
न चादर अर न तकियो-खोळी।
आंख लागगी दो-च्यार घड़ी
तो घणीं मोकळी
बाकी टैम फोर पसवाड़ा
राम-राम में रात काढदी।
इत्तै में राजा भोज
पड़ै बैसके अरबपताई
अर लागै लूखी किरोड़पताई।
न नाचै मन रै आंगण
कुर्सी अर सुरा-सुन्दरी
न भूख सतावै जड़ वैभव री
न कीं सूं ही बैर-ईसको
न कींरी ही चुगली-चांटी।
खाली बसै एक ही
कै फिर-फिर एकर
देश देखलूं
मन री रळी काढलूं
न पूरीजी मनस्या आ
मिनख जमारै में अबकै ही
तो मर्या पछै कण देखी
कुण भरै गवाही ईंरी?
सुणूं, केसर हंसतो
सरग धरा रो अठै विराजै
गंगा-जमना रो जीवण जळ
धोंवण मळ अन्तस रो
जन-जन नै सदा उडीकै।
उठै अठै
वायु री बाणी पर
हर-हर अमरनाथ अमरेसर
आकाश चूमतो
धरा रूखाळै
अचळ हिमाचळ
मचळ-मचळ।
रसै-बसै अठै ही सगळा
काशी, मथुरा, पुरी, द्वारका
रामेसर अर कवारीकन्या।
हंसै अठै ही वृन्दावन
भवरोग नसांवण
जींवन मंडण
पत्तां रै मर्मर सागै
तिरै पून पर
कृष्ण कन्हैया काळी मर्दन
अर रमै अवध अनूठी में
धनुष उठयां राम-लखन।
हंसै अठै ही वन-उपवन
घाटी फूलां री सरस सघन
बारै मास सेवा में सूकै
सदा सुरंगो
धरा रिझांवण सांवण।
भा-प्रतिभा
खरा-प्रखरा
पिंड प्रखर प्रतिभा रो
खड़ो मूर्तिमन्त भाखरा
बांटै अखंड
हीरा जींवता-जागता
हीराकुंड।
देखण नै जी करै देश रा
अजब अचम्भा इसा-इसा।
कोड में दौड़ती नैरां
सींचण धरा अनउर्वरा
खड़ा महाकाय
सेतु विशाल
चढतां-उतरतां नै
बांटै निरविरोध
एकता उल्लास
करै जी देखण नै
इसी धरा-इसै स्वर्ग नै
अबकै जाऊं-अबकै जाऊं
उमंग उछाळा मारै
पण जाऊं किंयां डर लागै?
डर घटना-दुर्घटना रो नहीं
बा घट सकै जचै जठै
बा रुकै न रोकी
अर मानै न बरजी।
डर मौत रो नहीं
बा बिना बकार्यां
ताळै में ही धर पकड़ै।
अर खींचै प्राण बिना खड़कै।
चोरी, ठगी अर जेबकटी
हुवती आई
न पद नै माफ करै
न परमेसर नै
हुसकै बै जठै-कठै ही।
डर खाली ईंरो
कै बिना विरोध अकारण ही
मारदै कोई बैठे सूतै नै
बिना बैर
बिना बकार्यां हीं।
बस-ट्रेन री छोडो
नहीं गारंटी
हवाई-ज्याज में भी।
माफ नहीं मठ-मन्दिर में भी
तीर्थ अर गुरुद्वारै में भी
तो जातरा पार किंयां पड़ै
देश फेर —
आंख्या मांकर किंयां कढै?
अर बिना गयां
दुविधा मन री किंयां मिटै?
याद रै पड़दै पर म्हारै
एक बूढी पाड़ोसण नाचै
सेंवती महीनां सूं मांची
सांकळ हुगी
आंख्यां मैली कोडी-सी
हुई गूगळी
बैठगी ऊंडी
अर चामड़ी हाडां रै चिपगी।
एक बेटी
दो बरसां सूं बसै सासरै
एक बेटो परण्यो-पात्यो
बहू लाडली
बण दो दिन पैलां
जण्यो गीगलो पैलो।
मां रा होठ खुल्या धीरै-से :
बेटा, छोरी नै लावै एकर
तो देखलूं मूं
जीस्सोरो छेकड़लो करलूं;
अबै जादा जेज नहीं
उडण मतै हूं।
लेवण बाई नै
चाल पड्यो बीरो
लियां कोड अणमीतो।
ले बैन नै आवै हो
बस अड्डै पर बम फूट्यो
कुण जाणै कित्ता मर् या
कींरी घोड़ी कुण नीरै हो?
उडीकै डोकरी बेटै-बेटी नै
अर बहू उडीकै प्राणनाथ नै
काळजो बैठै पल-पल नीचै
पण कींनै दौरी कुण पूछै?
एकदिन ठा लाग्यो :
बस में हुयो बम विस्फोट
मरगी बैन, बच्यो न बीरो।
टूटग्यो आसरो मां रो
आंख्यां हुई मूंगिया
लियां पीड़ अणमाई
बा बुझगी छेकड़ रो-रो।
एक बेल मुरझाई
उठै-पड़ै
दिस सूनी आसरो तकै।
ऊतरै अन्धेरो-
पात विहूंणों पादप सूनो
उठै आंधी
गरजै गंभीर आभो।
करै कुण रूखाळी
आंसुवां में भीगती री।
चिड़ियो मरण मतै
करै चीं-चीं
चिड़ी एकली।
पत्थर पिघळै
पण फोड़तो बम
आदमी कद लखै?
न आग पर बींरी कठै ही
असर आंसू करै
न पत्थर बींरो
दिस डोलती चीख सूं
गळै-पीघळै।
डाक्टर एक
बडो सेवाभावी
बेटी एक लाडली बींरी
पास बी.एस-सी.
बरस बीस री
गोरी किसोरी तन्वंगी
फूठरी परी-सी
बाल्ही ऊमर
मन्द पून में
झूलती-झूमती
डाळी फूलां री
लागती किन्नरी
स्वर्ग सूं उतरी —
डीकरी बा ईं धरा री।
छोटो भाई
पढै पांचवीं
हफ्तै बाद
मां-बाप
ब्याह-सूत में बांध बींनै
हरख मनासी
सपनों कर साकार
काळजो हळको करसी।
लेंवण नै आज बै
कपड़ो सूट रो
अर कर्णफूल कंठी, बींटी
टुर् या अमरसर
उगाळी सूरज री
पकड़ी बस अर तेवड़ी
ढळतै सूरज बै घरे ढूकसी।
खरीद लियो सामान रुच-रुच
पण आंवतां आधै रस्तै
जणां च्यार जीप सूं उतर् या
रोकदी सैसा बस नै
उतार सगळां नै
किया एक लैण में।
मूंढां पर मुखौटा
हाथ बन्दूकां
देख बांनै
बाळक गुघांवतां
हांचळां रै जा चिप्या।
बधगी मांवां री धड़कणां
कसलिया जरू
बाळकां नै बां।
शेष सगळां
जोड़्या हाथ कांपतां।
न होट खुलै
अन्धेरो आंख्यां पर
ऊतरै मतै
मौत दीखै सामनै।
सैसा लड़खड़ाया
होठ एक वृद्धा रा :
अरे, हूं तो जी चुकी मोकळी
जीऊं तो दुखी
जीऊं तो दुखी
पण जोड़ी मत छेड़ो
डाक्टर डाक्टरणी री।
दो दिनां बाद
भोळी सलोणी
डीकरी आंरी बैठसी बांन
चढसी चंवरी
आवै तांण जे छोडतां जोड़ी
भली करै भगवान
छोडो एक नै हीं।
लागी बीं बेळा गोळी
डगळियो-सी पड़ी डोकरी
मिलगी पून में चेतना बींरी।
धड़-धड़
धांय धांय में उळझती
दिसा डोली
कांपगी वनस्थळी सगळी
हवा कांपी
हुई रेत गीली
मींचली आंख्या पंखेरुवां
नस नीची किंयां
पण चंडाळ चौकड़ी
हुई आंधी-खुलां डोभां।
धराद्रोही
अर चेतना कायरी
ओढती अन्धेरो काजळी
लियां जीप
कुण जाणै कींनै गई
कठै लुकी?
कुण जियो कुण मर् यो
गिणै कुण लासां पड़ी
लियां कथावां मौन
लम्बी, गीली करुणाभरी।
दुख इत्तो ही
कै बो बन्दूकियो पापपुंज
जे न जणती कोई
तो न धरा भार मरती
अर न मावड़ी ढोवती
अप कीर्ति अणमीती।
बां सूं तो लाख आछी
गिंडकड़ी अर सूरड़ी सूगली।
हुवै ही पसरती रात लम्बी
उडीकतां मां-बाप नै एकटक
राखसी कोई कितोक धीरज?
बह निकळसी बा प्रीतड़ी
उडीकती मां-बाप नै
बरसाळू नदी-सी
कुण जाणै किसै मरुकान्तार में
सिसकती जा सूकसी?
बिखरग्या सपना
हुई अनाथ रासि रूप री
घड़ीजी मैक सूं
बा डीकरी ईं धरा री।
ज्यूं ज्यूं पड़ै रात
बिना पून
काळजो बींरो हिलै
जमै निरासा
भय बधै
भाई नै चिपा छाती जरू
अणमणी या खाट पकड़ै
पण निजर
बारणै पर रोपदै
अर मांडदै कान
कीं सुणन नै।
चीनों-सो हुवै खड़को
बा झट उठै किवाड़ खोलै
पण नांखती निसासां
लियां टपकती आंख्यां
ढळती रात घड़ी रा
टणका सुणै
पग राख धीरै
खाट पकड़ै।
जाग पड़ै भाई
बो पूछ बैठै :
बाई, मम्मी कठै?
पाप कठै?
बा धर काळजै हाथ बीरै
धूजतै होठां
बोल कांपता उचारै :
नीलू!
तूं ले नींद निधड़क
बै आसी दिन ऊगतां हीं
लासी पोसाक थारी
सागै पैन थारो
घड़ी फूठरी
अर चैन सोनै री म्हारी।
काढी रात करतां इंयां
न बाहुड़या मां-बाप
सूजगी आंख्यां
भूख मरतां
चिपी आंतां।
देख भाई नै ओदर् यो
कळायण काळजै ऊमटै
औसरै नैण नभ सूं बा
धरती देह री गीली करै
पण ज्यूं-ज्यूं हुवै बा गीली
त्यूं-त्यूं बळै-ऊकळै।
स्पर्श मांगै डील बांरो
नैण चावै रूप देखणों।
जागै दिस पूरबी
बधै किरणां नाचती
पण भाई रै बात बा ही :
बाई, कठै पापा
कठै मम्मी?
ज्यूं-ज्यूं दिन चढै
बिच्छू रै ओळभां-सो
बधै बिस चिन्ता रो।
न भूख
न जीमण नै जी-करै
रह-रह सोचै
कींनै पूछूं
कुण बतावै
झळ बुझै कद काळजै?
एक बूढी पाड़ोसण
देख बेल नै भूखी तिसाई
राख सिर पर हाथ
प्रीत में डूबती बोली :
बेटी, तूं समझदार
अर पढी-लिखी
'भोळी, सोच कीं
जे पड़गी बीमार
तो किसीक हुसी
करसी मां चाकरी थारी
का करसी त्यारी
हाथ पीळा करण री?
टैम खरीदण में
लागगी हुवैली कीं बेसी
का निकळगी हुवैली
बसड़ी कोई बैगी
रुकग्या हुसी
विश्वास राख
चूकग्या काल
तो आज बांनै
घर पकड़नो पड़सी।
बींरी सीख रो पाणी
पड्यो पत्तां पर
हुयो पूगणों दौरो मूळ तांईं।
पण घटना घट्योड़ी
लुकी कितीक रैसी?
आज नहीं तो काल
पकड़ कानां री पगडंडी
बा आरसी-सी पारदरसी
चेतना पर आ उतरसी।
बींरी धूजती धरा पर
बीं बेळा,
भूचाल आसी
चटकसी बो चूळिया
बीं जींवती अट्टालिका रा
कुण कह सकै
रैसी खड़ी बा
का ओढती अन्धेरो
पूगसी पाताळ बा?
हुसी चूर-चूर
खिंडसी प्राण रा डगळिया
बीं जीवती अट्टालिका रा
उगळसी बां पर
दिन अन्धेरो
खोलसी रात बां पर
आवरण मौत रो।
बा पढ़ी-लिखी
स्यांणी अर समझणी
जे रही खड़ी
ईं मौतिया अन्धकार में भी
थिर हुयोड़ी
तो बींपर,
सोच पैलो ओ उतरसी :
कै उम्मीदवार
जीवन साथी म्हारो
बेटो एक ही
मानहठी मां-बाप रो
राखै पगां नीचै डुगडुगी हरदम
घर धापतो
अर हाथ खुल्लो।
एम.एस-सी. कियोड़ो
ब्याव में संगळिया कालेजिया।
रथ आगै नाचण खातर
बै रचै अबार सूं हीं
योजना पर योजना
फेर नाचसी उछळसी
ले-ले पैग
मस्ती पून में उछाळसी।
आछी तरै याद बींनै
समधी शर्त आपरी
म्हारै बापू आगै
भाखदी आगूंच ही।
कै म्हारै एक छोरो
अर ब्याव घर में पैलड़ो
बराती घणां नहीं
सौ नैड़ा समझलो
बीस छोरा बीन रा
बांनै समझो न्यारा
माण मनवार बांरी
करो रळी आवै जिसी
दे देया गिफ्ट में कीं
घड़ी, अटेची
दाय आवै ज्यूं हीं।
एक कार अर फ्रिज, टीवी
सोनो-चांदी, बेस-बागा
बात सगळी खोलली।
पण अबै?
न नव मण तेल
अर न राधा नाचै।
अबै न मां-बाप
न काको-काकी
बसै ननिहाल
मामी अधबूढी।
पन्दरै बीघा जमीं
दौरी-स्सोरी बापड़ी
खेवै बीं में नाव आपरी।
अबै न दायजो
अर न अठै गीत-गाळ
न बै लाड-कोड
अर न माण-मनवार।
पूंजी रो खरीददार
डीकरी अनाथ री
प्यार सूं ले जावै
भांग पियोड़ो तो है नहीं?
बेटो पढ्यो-लिख्यो
तिसायो पैग रो
समझै पड़्सै नै कांकरो।
बींनै कमी क्यांरी
काढ न्यौरा नुंवां धनी
नांखसी ऊपरथळी
छोर् यां आपरी।
मन पर बींरै ऊतरै विचार
कै म्हारै नैड़ला न्याति-गिनाती
का प्रेमी पापा रो कोई
पळूस सिर म्हारो
जे सूंपदै मनै
पचासी पार करतै
कीं पियक्कड़
पइसै रै धणी बळध नै
तो भोगतां अभिशाप बो
ऊमर किंयां काढूं
रींक-रींक रो-रो।
ईं सूं आछो
मान काळपुरुष नै
प्राण-प्रियतम
कर नमन
करूं निर्भय वरण।
बचै न जिन्दगी बांस री
फेर बंसी प्रीत री
खोखा खांती गई कठै ही?
रह-रह,
कांपै काळजो बींरो
मरणै नै मंगळ गिणूं
पण पैलां बीं अबोध रो
भीडू कठै सोधूं?
कुण पळूसै बींनै
कुण चिपावै काळजै
चिन्ता री पोखरी में
बा लूण-सी गळै।
अणेसै रै नीर सूं
नदी बा भरी-तरी
बह निकळसी
कुण जाणै किसी गळी
सूकती-सिसकती?
थकां पाणी
सूकै होठ
भरै आंख्यां
मरै तिस्सी।
सोचै बा उदास बैठी
कै कुर्सी रै चिप्योड़ी
सत्ता जठै चींचड़ी
जे करलै अपहरण म्हारो कोई
उग्रवादी आतताई
व्यवस्था पर दाळूं आंसू
और तो उपाय कांईं?
करूं कूच
बेबसी में एकली।
सूंप भाई नै भावी रै भरोसै
बुचकार-सी, फटकार-सी
कांई करसी बा ही जाणै?
अबार सगळै रूप रस
अर जड़ नै डभकती धरा
चैरा राखसी चिलकता
काळा रैसी काळजा।
तो सोध्यां
सैज में कद मिलै
हम्मीर हठ-सा हाथ सैंठा।
जठै बा ढक—
प्यार सूं अनुज नै
गम नै कीं गिट सकै।
आफत उग्रवादी आ
उतरी नहीं आकाश सूं
जन्मी धरा पर
आदमी री कूख सूं।
बा क्रूर कृत्यां-सी
मंडरावै आखै मानखै पर
उफणती एकसी
कित्ता अबोध बाळक
बिलखै बीछड़ै
तरसै मां-बाप नै
देख्यां काया बळै
काळजा ऊंचा चढै।
वृद्ध वृद्धा
कुण जाणै कित्ता
रो-रो ढोवै
पीड़ अणचाही
पी-पी घूंट आंसुवां री।
एकै कांनी पनपै
आ व्यथा रोगली,
दूजै कांनी-
माया में अळूझती
ठगौरी केई
धरती रा पग बाढण में
लाग्योड़ी दिन-रात एकसी।
बै बैठ एकली
रचावै शस्त्र संघातक
अस्त्र आणविक
पणडूबी अर बमवर्षक
गैसां जहरीली—महारोगली।
करै बै-कोढ, कैंसर
अर सृष्टि रचै लकवै री।
बै बेचै माल आपरो
ओढ दुपट्टो विश्वप्रेम रो
बाणी पर करै उजागर
संसार सैत-सो मीठो।
राखै काळजै
छुरी तेज धार री
खुल्लैखाळै
बेचै माल आपरो।
नगद-उधार
कच्चै माल री एवजी में
जियां-तियां चोटी आगलै री
हाथ राखै आपरै।
डोभा काढतो एक डालर
रिपिया आपणा पचास जीमै
पचास ठोकै टाट में
जणां एक गिणै।
बो मुळकै होळै-होळै
रिपियो रीसां बळतो
टाट पंपोळै।
डालर बोल्यो :
मार म्हारी एकलै री कित्ती
तै बिखेरदी उदासी
हद हुगी?
दोस्त, कमजोरी आ
आगै किंयां पार पड़सी?
हूं एक नहीं,
म्हे किरोडूं डालर
मौज करां थारै माथै
दोस्ती निभा
ओ देश धरती रो सिरताज
थारै तांण चालै।
रिपियो सोचै
एक रै बदळै
खांवतां पचास
कुण जाणै कित्ता जुग बीतै?
डालर-सा दुखदेवा
कुण जाणै सिक्का
और कित्ता-कित्ता
म्हारै सिर बैठा?
म्हारो सिर
अर बांरा जूता,
ई हिसाब तो
पड़ै जिता ही थोड़ा।
बो पगां उबाणों
दिनरात भागै एकसो
कर-कर भेळा
सूंपदै बापां नै सगळा
आप उघाड़ो अधभूखो
दम उठै-
डील पड़ग्यो आधो
ब्याज भरतो
जवानी में हीं हुग्यो बूढो
कद हथियारां सूं लार छूटै
कद पेटभर रोटी बापरै?
बीन मरै चावै मरै बीनणी
खरी मजूरी जोसी री।
पण खाली मर् यां चोर
नहीं सरै
मरै चोर री मां
जंग जणां ही जीतीजै।
हुवै विस्फोट जठै भी
मरै आदमी
भागै अर लुकै भी
बळै खड़ा खेत
घर पड़ै ही
इमी नै उडीकै धरा
पण करै मेघ काळजो काठो
कद हंसै धरा
निखारै रूप आपरो?
जींवन आदमी रो फेर
किंयां निभै?
कुण सोचै?
न सोचै मारणियों
अर न माल बेचणियों
पण दुख हुवै
जद पइसा बटोरू
दोगला, दोहीला
चंट, चालाक, चोरटा
करै चर्चा मानवाधिकार री
कथणी तो मानवाधिकार री
अर करणी नरसंहार री
आ जीभ आदमी री
जहरीली अर दुमुंहीं
टाळै रामजी।
आदमी आदमी नै मारदै
तो बो जावै कठै?
लुकै कठै?
अै न दुर्घटनावां
न ओ जंग
न आ मौत
न ओ मजब
न ओ जिहाद
आ भूख है
आदमी रै पेट री नहीं
है बींरै भटकतै मन री
सूगली अर महारोगली
महारोग ओ
दिन-दिन बधै
आस्था धरा री
ढकीजै ढीली पड़ै
पण धरती सूं परबारो जा
आदमी—
बिल किसो ढूंढै
बड़ै कठै?
उग्रवाद आबाद
मानखो बर्बाद।
प्रधानमन्त्री जठै
उड सकै दिन घोळै
फुणकलां-सो
तो गळी रै आदमी री
कुण करै रिछपाल
कुण दै भरोसो?
आजादी नै ऊमर लियां
बीतगी सदी
आधी सूं घणीं
पण बापड़ी बा
न हंसी टाबरथकी
अर न देखी बण
उठती जवानी।
जलमती ही अंग-भंग
अर हुई रोगली
'देखतां-देखतां
पकड़ली बण डांगड़ी
चालै टसकती
हुगी टंटेर बूढी।
बा दुखी
तो धरा सगळी दुखी
पण ममता सिंघासणी
आंधी अर खथावळी
मारली कुल्हाड़ी पगां पर
बिना सोचै आप ही।
अबै आंख मींच
आए दिन दोनूं लड़ै
खूटग्यो सनेव आग बरसै
बिना कारण
बेगुनाह मरै
वानरा हथियार बेचै,
अर दूर बैठा मजा देखै,
हुवै आदमी अभीत किंयां
आ राड़ रोज री
कींनै ठा कद मिटै?
जी में आवै
घूम-घूम देश देखूं
अर काढूं रळी मन री
पण मनड़ो डरै
पग बींरा पाछा पड़ै।