लाठी-लठ अर डांग-दण्ड रो

नांव-काम है-अेक

हाथ में राखै जका भाई आनै

बांरी राखै-टेक...॥

हाथ में राखणी जद सूं छोड़ी

सैंग भाईड़ां-लाठी

इण कारण सूं दुख पावै

म्हांरै देस रा सगळा वासी...॥

संतां रै तो दण्ड नांव सूं

लाठी हाथ में रेवै

जको करै चूंचाट बिरै

ग्यान दण्ड खळकावै...

लाठी कारण पुलिसिया तो

जबर अकड़ में रेवै

ईं कारण सूं आं भाईड़ां नैं

कोई कीं ना केवै...॥

चौकीदार नैं हाथ री लाठी

सगळी बात-बतावै

लाठी मतळब जिम्मेवारी रो

खरो-खरो अखरावै...॥

गांधी लीनी हाथ में लाठी

जिण सूं डरता-सगळा

लाठी सूं आजादी ली

कांईं जाणों नँईं थै भाईड़ां...॥

हाथ में लाठी गफ्फार खां रै

सदै आजाद ही-रैई

जठै-जकै छोड़ी लाठी

बांरो धणीं-धोरी ना कोई...॥

लाठी स्काउट रै सागै

पग-पग रेवै अगाड़ी

लाठी बिन जीवण सूनो

ईं बात नैं धरो कुपाळी...॥

आरै.सैस. री लाठी नैं करै

झुक-झुक दण्ड-प्रणाम

लाठी चुकै नीं मौको कोई

आवै सगळाँ रै-काम...॥

छोड़ लाठी नैं छड़ी धारणों

बात रेवै नँईं-सागी

इण कारण सूँ चोर-फोगटिया

करै-घणी बदमासी...॥

हाथ में लाठी जकै रै रेवै

भैंस बो खोल लै जावै

मुँ लटकायो रेवै ताकतो

लाठी हिम्मत करावै...॥

लाठी री महमा रा जो

गुणगान करै बैई थोड़ा

छोड़’र लाठी पाणा पड़सी

नँईं पाणा जका फोड़ा...॥

लाठी-लठ अर डांग...

...राखै-टेक...॥

स्रोत
  • पोथी : नँईं साँच नैं आँच ,
  • सिरजक : रामजीवण सारस्वत ‘जीवण’ ,
  • प्रकाशक : शिवंकर प्रकाशन