कार सूं बारै खडतां ई
म्हूं पछाण ग्यौ
यौ आपणों ई
लाखी कौ पोतौ।
मस्त चाल,
भूरा बाळ
मांजरी आंख्यां।
घणा दनां पाछै
गांव आयौ छै
नुई नुई कार
लायौ छै।
लाखी नै
घणा लाड सूं
म्हई बाड़ा में
रोप्यौ छौ।
बरसां तांई
म्हारी रूंम कर’र
म्हारा रूंम रूंम ई
सींच्यौ छौ।
आखर बगत
कुटम कै तांई
या खैर सूंप्यौ छौ।
ईं रूंख नै
म्हारौ बेटौ मान ज्यौ
लाखी की या
‘लाख टका की बात’
जाण ज्यो
म्हूं
काळू कौ बाळपणौ
कस्यां भूल सकूं छूं?
यो
म्हारी छांवळी में
घुटळ्या घुटळ्या चालतौ
पानड़ा कै बीचै सूं
छण’र आतो तावड़ौ
पकड़तौ, लपकतौ, सरकतौ।
जद यौ म्हारै नैन्या नैन्या
हाथ लगावै छौ
तो ईं की
हतेळ्या का
गुदगुदा गुद्दा
म्हारा रूंम रूंम ई
गुदगुदा जावै छा
अर म्हारा पान-पान
उमग जावै छा।
यौ
म्हारा सायरा सूं
ऊबो हो’र
चालबौ सीख्यौ छौ।
म्हारै चक्कर
काट-काट’र
भागबौ सीख्यौ छौ।
म्हारी कलमां सूं
मांडबौ सीख्यौ छौ।
म्हं पै
लूमतौ झूमतौ
कर्या खातौ
लाळां टपकातौ
कलाम लाकड़ी खेलतौ
पतंगा उतारतौ मेलतौ
घुसाळां मां झांकतौ
चूजा खड़बा की
बाट न्हाळतौ
म्हं पै
कील ठोकतौ
कांच टांकतौ
मांग पाड़तौ
होटां कै ऊपर
की रवाळी नरखूतौ
घणी-घणी बार
देख्यौ छै।
परणबा पाछै
म्हारी आड़ ले’र
नुई-नुई कै आड़ी
झांकै छौ।
अठी-उठी सूं
ताकै छौ।
म्हारा छांवळी में
खाट बछा’र
म्हारा सायरा सूं
डोडौ सराणौ लगा’र
साता सूं सोवै छौ
नुई कार देखबा
आखौ गांव आयौ
जाणै तौ
बावळ्या गांव में
हाती आयौ।
छोरा-छोरी
कार कै आगै-पाछै
झूम र्या छा।
क्वांड़ पकड़’र
लूम र्या छा
बोनट पै
रस्क र्या छा
कांच बजा र्या छा
रीगंटा खींच र्या छा
वाइपर ईंच र्या छा।
अतना में
ऊं पै
बांदरा कूद ग्या
काळू का
हात-पांव फूल ग्या
रात में
ऊं पै
गण्डकड़ा सो ग्या।
काळू नै सोची
नुई कार का तौ
भाग ही रो ग्या।
गैरीज बणावा की
सोची
पण रूंख
बीचा में
खड़ौ छौ
अर लाखी कौ
लाख टका कौ बचन
बीच में
अड्यौ छौ।
सोचतां-सोचतां
आखी रात जाग्यौ
पण ईं नरणै पै आ ग्यौ
यौ रूंख बूड़ौ हो ग्यौ
ई कटा दूंगौ।
गैरीज तौ
बण ही जावैगौ
क्वांड़ भी खड़्यावैगो
बची लाकड्यां का
रप्या हो जावैगा
छोरा छोर्यां कै
काम आवैगा।
खाती बुलायौ
आपणौ बच्यार सुणायौ
खाती बोल्यौ
तड़काऊ मैं आऊंगौ।
धार दार खुराड्यौ लाऊंगौ।
छोकी मजूरी लूंगौ।
ईं रूंखड़ा ई तो
अेक ही दन में
काट न्हांकूगौ।
काळू नै
सांकळ लगाई
धोर अंधेरौ छो।
ठोकर लागी
ऊं नीचै
पड़बा ही हाळौ छौ
के तणौ थाम ल्यौ
पण ऊं ई अस्यो
लाग्यो जस्यां
ऊं का बूड़ा बाप नै
ऊं ई अेक बार फेर
साम ल्यौ।
धार दार खुराड़ी की धार
अर अेक ई दन में रूंख
काट न्हांकबा की बात
काळज्या में गड़गी
जनम-जनम का
सगपणा की आंधी
बधगी
बाळपणा सूं
अब तांई की
यादां आ गी।
रूंख काटबा का
बच्यार ई
खा गी।
करुंटां बदळता-बदळता
कटी सारी रात
सांच्याई
लाखी की छी
‘लाख टका की बात’।