इण नै माता रै पेट सुणी, इण नै पीढे पर लेट सुणी
पीळे पोतड़ियां में पळकर, दायी-दादी री कथा गुणी
दादै रै हरख दुलारां में, नानै रै माखण न्ह्यारां में
मामै-मामी री प्यारां में, बाबलियै रै बुचकारां में
नानी री कहाणी तो ओजूं, आखां नै आज जबानी है।
क्यूं भूल रैया निज भासा नै, जो मायड़ राजस्थानी है।।
...
भाई-भैणा में नाच-कूद, रंग आंख मींचणी रमता हा
जागण-जम्मा अर रतजग्गा, जद सुणनै खातर जमता हा
पोसाळ पधारया गुरुवां री, मूंढै माथै मरुवाणी ही
जिण रै जरियै ही सूं सगळां,हिन्दी अंग्रेजी जाणी ही
जिनड़ी री मोटी नींव जमी, रूं-रूं में रमी दिवानी है।
क्यूं भूल रैया निज भासा नै, जो मायड़ राजस्थानी है।।
इण में वीरां री वात मिलै, इण में जौहर री ख्यात खिलै
चारण जैन्यां री चेतनता,लिखियोड़ी पोथ्यां जोत झिलै
सैणां-नैणां रो ग्यान लियां,दातारी रो सणमाण दियां
दिलदारी अक्कल में ऊंची, विस्वै में व्यापक नांव कियां
जिण सूं देवा-लेवो सीख्या, बड मायड़ भासा मानी है।
क्यूं भूल रैया निज भासा नै, जो मायड़ राजस्थानी है।।
सेवा-सट्टां री सेनाणी, बीजक हुंड्या री हेमाणी
दरबारी पट्टां-पतरां री, नवनीत-रीत री नेमाणी
आसाम, ममोई ना अटकी, नंनण रै खेती जा खटकी
सिक्कम-गांटुक रै गैला में, वाणिज में बिजली सी कटकी
जग जीवट आदू अण्णभै सूं, पाई धाखड़ जिनगानी है।
क्यूं भूल रैया निज भासा नै, जो मायड़ राजस्थानी है।।
रही माऊ कळाकारां री, है हाऊ दुसमण सारां री
आ ताऊ तामसकारां री, नातेली सागण न्हारां री
सुख री भोमी री साख चि'णो, मीठी मधरी नग आंख मिणो
धन राजस्थान सुख रुप धनी, मन माळव मात जबान गिणो
भासां रै इतिहासां उज्जळ, विग्यान मनां रजधानी है।
क्यूं भूल रैया निज भासा नै, जो मायड़ राजस्थानी है।।
प्राचीन काळ सूं सरस पगी, हिन्दी साहित री नींव लगी
भल सौरसेनी अपभ्रंस जणी, जिण सूं ही ब्रज अर खड़ी जगी
रासां री रीत पुराणी है, सन्तां म्हंता पैचाणी है
गाथां गीतां रा भेद घणा, हद गौरव पुखता पाणी है
जूनापै में कुण होड़ करै, गद्य-जात सैंग लजखानी है।
क्यूं भूल रैया निज भासा नै, जो मायड़ राजस्थानी है।।
गुरुदेव रवीन्द्र सुण रीझ्यो, मैमा माळवीय हांफीज्यो
सर टॉड ग्रियर्सन दिल सीज्यो, तैसीतोरी भणकर भीज्यो
चाटुरज्या इण नै चावै है, धीरेन्दर जी मन भावै है
गुण गावै भासा विग्यानी, दो क्रोड़ मिनख मूं बावै है
देखण नै दुनिया राजी है, भाजी आवै इण कानी है।
क्यूं भूल रैया निज भासा नै, जो मायड़ राजस्थानी है।।
ख्यातां-वातां रा भंडारा, बचनिका, वेलि रा गुण न्यारा
भरपूर भारती दसा-रसां, परवाद सतसई सै प्यारा
सतरंगी साहित धारा है, लेखक कवियां री करणी है
भवसागर पार उतरणी है, भावां गुण-गरिमा-तरणी है
ओळमै, कळायण, कुरजां, लू, मरुवाणी वीर-भवानी है।
क्यूं भूल रैया निज भासा नै, जो मायड़ राजस्थानी है।।
इण सूं ही बाबू साहब बणै, अर अवस बडा नर बाजै है
खावां-भावां, पैनावां री, रग-रग में भासा साजै है
संस्करती सबदां सागण है, पर परकरती बदळावै है
मां दूध तणा जो तत्व मिलै, कद छयाळी दूधां पावै है
पण आदत सूं मजबूर हुया, गळ गिट पिट राग मिलानी है।
क्यूं भूल रैया निज भासा नै, जो मायड़ राजस्थानी है।।
मायड़ रो दरजो ऊंचो है, मायड़ रो करज समूचो है
कुण काढै इण में खूंचो है, लिखतां कुण पकड़ै पूंचो है
पर आ बूढी माता दाई है, दूजोड़ी धण जोबन छाई है
हम-तम, इंगलिस अपणावणियां, मायड़ सूं लज मैमा पाई है
कळजुग में हुया कपूत घणा, जो बहुवां रा वरदानी है।
क्यूं भूल रैया निज भासा नै, जो मायड़ राजस्थानी है।।