थारै खुद रा सबदां नै

परोटतां

थारै दिखायोड़ै

दरसावां माथै

नाड़ हलावंता जै!

म्हारा जलमदिन निकळना हा

फेरूं क्यूं दीन्ही

म्हनैं रचण री ऊरमा?

सामीं मूंढै म्हां सूं

बात नीं करणिया

थारै परपूठ अेक ओळभो है-

कीं तो म्हारै रचण अर सिरजण पेटै

'कोटो' राखतो।

स्रोत
  • पोथी : मंडाण ,
  • सिरजक : हरीश बी. शर्मा ,
  • संपादक : नीरज दइया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ,
  • संस्करण : Prtham