तरक्की रै खांवां चढ

म्हे गांव छोड़

अंगै धार लियो सैर-

कूओ पण सांभ्यां बैठ्यो है

म्हारै पुरखां रा अैनाण

उणां रै होवण री साख!

आपरी पाळ माथै

पड़ी होवणीं है

पुरखां रै हांथां छुट्योड़ी

अेक-आध डोलची

पिंदै में कूवै रै-

जिण नै लगायां बैठ्यो है

काळजै

कूवै नै पण सांम्भै कुण!

स्रोत
  • पोथी : भोत अंधारो है ,
  • सिरजक : ओम पुरोहित ‘कागद’ ,
  • प्रकाशक : बोधि प्रकाशन, जयपुर ,
  • संस्करण : प्रथम