कूंख री अणछाई कळियां

मंदरी मंदरी होय’र

अेक अेक टूट्योड़ा पानां री भांत टूटै

उण समै

पोटली हाथ मांय लेवतां

थर-थर धूजतो काळजो हाल जावै।

अर मायड़ रा गाल आला हुय जावै।

इण पाछैं कांई

मजबूरी हुवैला

दोन्यूं जणां री

कोई म्हानै नीं पूछैला।

बात अग्यात मन मांय

समंदर रा रसातल मांय पड़ी है।

जो सांवठै समै री बाट जोवण लागरी है।

म्हारै अंधारा

घर रो दीवलो

क्यूंकै म्हानै

उणरी रोसनी री उडीक है।

उण ई‘ज विधाता रै सामीं

मन ही मन म्है

पूजा-अर्चना करतो रैवूं।

म्हानै थ्यै क्यूं छळ्यो भगवान

म्हारो कांई दोस

कदी देखैला म्हारी बाट

कदी थांरी दया दीठ हुवैला म्हां पै

म्हारै मरबा सूं पैल्यां

म्हारी बळण अर इण घर री जळण रो

बंदोबस्त कर दीजै म्हारा ठाकुरजी।

म्हारी घणी-घणी खम्मा री

अरज हिवड़ा री

पाती जाण सुण लीजै

सुण लीजै ठाकुरजी।

स्रोत
  • पोथी : बिणजारो 2017 ,
  • सिरजक : श्यामसुन्दर टेलर ,
  • संपादक : नागराज शर्मा ,
  • प्रकाशक : बिणजारो प्रकाशन पिलानी ,
  • संस्करण : अङतीसवां
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