इन्द्रापुर जहड़ो इन्द्रप्रस्त

नैणा मोवन रचना राची।

घर-घर में कोड उछाव घणो,

हो बडो परब हल चल माची॥

गोर्‌याँ रा छिड़ग्या गीतड़ला,

मीठै कंठाँ स्यूँ गहकै ही,

बसीयोड़ी बास बायरै में,

खसबूं स्यूँ गलीयाँ महकै ही॥

बाटाँ मैं तोरण सजीयोड़ा,।

हाटाँ री सोभा निखरी ही।

नगरी ही नुईं बीनणी सी,

कण-कण में कुँ-कूँ बिखरी ही॥

रोळो हो राज मारगां पर

पुरवासी उमड्या आवै हा

वैभव भरिया भूपतियाँ नै

देखण नै लोग उमावै हा॥

हाथी चाले होदा हालै

बै तुरळा करळा अरड़ावै।

रथ पालखियाँ पर चढ्या भूप,

पाँडूड़ाँ रै गढ़ में आवै॥

गढ़ मोटोड़ो मुळकन्तो सो,

सिणगार कर्‌यो मन हरतो हो।

ऊँचो धज भारत भूपत रो,

आभै स्यूँ बातां करतो हो॥

हो धरमराज रै राज यग,

नर नाथ समूचा बुलवाया।

हिंदवाण धणी री सभा सजी,

धरती रा धारणीयाँ आया॥

आखी अवनी रा राजेस्वर,

समराठ दूर देसाँ वाळा।

फोजाँ रा माँझी फूठरमल,

मन भावणीयें भेषा वाळा॥

आया दरबार जुधिष्ठर रै,

सिसटी री सोभा आई ही।

जाणै धरती पर धरम राज,

सरगाँ स्यूँ होड लगाई ही॥

ज्ञानी ध्यानी बै रिसी मुनी,

तपसी ब्राह्मण मोटा महीधर।

जद जथा जोग जा जा बैठा,

सह आप-आप रै आसण पर॥

बोल्यो समराठ हिन्दालै रो,

मिठ ज्यावै धरती रा विवाद।

सिसटी में साँती समरधी हो,

इण कारण सब नै किया याद॥

राजयज्ञ है राजावाँ,

मोटो परतीक एकता रो।

धरती रै सुख दुख नै बांटा

बरसै वरदान देवता रो॥

मिनखां री मोटी दुनियाँ है,

ठंढै तातै नै सहणो है।

स्वारथ में खपणो खोटो है,

सगळा नै सागै रहणो है॥

थे भूप, जिता हो धरती रा,

हूं छोटा थानै कहूँ कियाँ।

सह बराबरी रा भाई हो,

म्हारै तो अरजुन भींव जियाँ॥

दुनियाँ मन में जाणै है,

समराठ बडो हूँ भारत रो।

है बळी भींव सहदेव नुकल

मोटो भाई हूँ पारथ रो॥

बळ स्यूँ भूपाल दबा लीना,

मन मानी मोज मनावण नै।

धरमराज रो राजयग,

धरती पर धाक जमावण नै॥

पण हूँ, मन में जाणू हूँ,

कुण मोटो है कुण है छोटो।

स्वारथ स्यूँ त्याग सदा बत्तो,

बळ स्यूँ तो प्रेम घणो मोटो॥

प्रेमी में सेवा बो भाव अडिग,

बो बिना मुकट ही राजा है।

पर हित में आत्म त्यागी है,

बै मनड़ा रा महाराजा॥

समराठ समूची धरती रा,

याद राखज्यो बात एक,।

सेवा रो बानो राज मुकट,

मत समझया इण में मीन मेख॥

मोटो है त्याग तपस्या स्यूँ

ऊँचो उठणो है त्याग करो।

करुणा कर पीड़ पिवो धर री,

संताप हरो,अनुराग भरो॥

इतरो कियो धर्‌यो सारो,

यज्ञ सफळ जद जाणाला।

मनड़ाँरा मैल निसर ज्यावै,

वसुधेव कडूंबो मानाला॥

है सै आसण भर्‌या सभा रा है,

बैठा हो सारा बळसाली।

पण सरब पूज बैठे जिण पर,

बो ऊँचो आसण है खाली॥

तपसी ज्ञानी मोटा रावळ,

बैठा गुरु द्रोण कृपाचारी।

हूँ पूछूँ पुज्य पितामह नै,

कुण इण आसण रो अधिकारी॥

भीषम तेजस्वी खड़ा हुआ,

सब नै सम्बोधन कर बोल्या।

जाणै भरियो बादल गाजै,

ब्रिमचारी कंठाँ ने खोल्या॥

आसण सभापती रो है,

धरती रै सरवस रो आसण।

सरब मान्य जग बाँधवरो,

है प्रथम पुरस वाळो आसण॥

परम पुनीत धरम धर ज्ञानी,

अवनी रै विधी रो आसण।

समराठ निवै, जिण आसण नै,

जन-जन रै प्रतिनिधी रो आसण॥

इण ऊँचोड़ै आसण ऊपर,

बैठे साचो सत्ता धारी।

तो भरी सभा में एक पुरुष,

है श्रीकृष्ण ही अधिकारी॥

अनुमोदन सभा कियो सगळी,

घनश्याम खड़ो हो मुसकायो।

चन्देरी रो राजा कोप्यो,

रोळो करतो सामो आयो॥

तूँ ठैर कृष्ण थारै आसण,

आगै पग धरणो खोटो है।

पूछूँ भरी सभा नै हूँ,

कुँकर सब स्यूँ मोटो है॥

ज्ञानी अै ब्यास बिदुर बैठा,

जोधा भीषम द्रोणाचारी,

कृष्ण कियाँ पूजीजै है,

बैठा मोटा सत्ता धारी॥

ब्रामण रो भेष नहीं इणरो,

है रिसी नयीं रितीवज कुँकर।

राज चिन्न स्यूँ हीण पुरष,

कुँकर बैठे इण आसण पर?

ज्ञानी हुयो किसै दिन रो,

ग्वालो है गायाँ चारणीयों

बनराबन रो नट नाचणीयों,

वृज री मरजाद बिगाड़णीयों॥

बाळकपण री बाण पड़ी,

चोरी कर माखण खायो है।

कुन मानै मोटो सूर बीर,

हूँ सतरा बार भगायो है॥

इण जनखै नैं ऊँचो आसण,

रजपूती थानै रोवैली।

धिर्‌कार जमारो राजावाँ,

ग्वाळै री पूजा होवैली॥

भीषम बोल्या सिसपाल ठैर,

क्यूँ ऊँची खींच्याँ जावै है?

सूरज नै धूड़ उछाळै है,

क्यूँ झूठी राड़ बधावै है॥

कुनणापुर री धरती जाणै,

लाय बठैरी लागी है।

मारग नहीं मिल्यो भागतै नै,

सिसपाळ कृष्ण बो सागी है॥

मामैं री मोत दुखै थारै,

बो बदलो लेणो कियां कठै?

टूट्योड़ा हाड जरासिंध रा,

बै नयीं जुड़ैंला आज अठै॥

कृष्ण कंस रो काळ रूप,

रिसीयाँ स्यूँ मोटो, ज्ञानी है।

चन्देरी रा ओछा राजा,

तूँ द्वेष भर्‌यो अभिमानी है॥

रोड़ो है विश्व एकता रो

भारत नै भलो उजाळै है।

ओछो बोलै है भरी सभा,

कायर ज्यूँ थूक उछाळै है॥

हूँ पूछूँ मोटी स्यान कियाँ,

समराठ बडै गढ़ वाळै री?

नाचै धरती रा राज मुकट,

आँगळीयाँ पर इण ग्वाळै री॥

ग्वाळो जको गरु सब रो,

तेज रूप, सत वाळो है।

जग बान्धव, गोरव भारत रो,

पाँडू कुळ रो रखवाळो है॥

मत भूल राव चन्देरी रा,

एकै बिन बात बणै कुँकर।

बहुमत स्यूँ सभा चुण्यों जिणनै,

बैठे बो ऊँचे आसण पर॥

तू कायर ज्यूँ कोझो बोलै,

डोबै हैं नावँ बडैरौ रो।

आज चूकतो दिखै है,

बदलो बो सतरा फेराँ रो॥

सिसपाळो बोल्यो भुजा उठा,

जस गायो घणो जाळीये रो।

बीरौँ ज्यूँ बदलो चुकवावै,

बो कोनी डोळ काळीये रो॥

तंत बायरो, अण नीतो,

मोटो नर पुंगव कियाँ हुयो।

लापर छँटियोड़ो लूँगाड़ो,

भारत रो गौरव कियाँ हुयो॥

जे आज करैला आँख मींच,

पाँडू इण ग्वाळै री पूजा।

तो राड़ घणी बध ज्यावैली,

यज्ञ पछै करसी दूजा॥

सहदेव ऊछल्यो आसण स्यूँ

बोल्यो खाँडै पर हात लगा।

इण पूजा रै प्रतिकूल जका,

बै सभा छोड़ होवै अळगा॥

दळ बळ स्यू समरथ सज आवै,

खाँडाँ रो जोर बतावणीयाँ।

तोलै तलवार पाँडवाँ री,

रण आँगण, यज्ञ मिटावणीयाँ॥

बकवाद करै राव खड्यो,

मुखड़ै भरियाँ विष काळै रो।

हूँ पूछूं हात उठा ऊँचो,

कुण साथ करै सिसपाळै रो॥

म्हानै तो कृष्ण सुहावै है,

कुण रै चुभै जिस्यो काँटो?

सुण मोन रया सगळा रावळ,

बहरयो सभा नें सरणाटो॥

सिसपाळ कयो हूँ मानू हूँ

थोड़ा है, सतरा जाणणीयाँ।

अै वीर नयीं सब कायर है,

इण झूठे मत नै मानणीयाँ॥

भीषम रो राम निसरग्यो है,

समराट हुया अण बोलणीयां।

अधरम पर उतरयो धरमराज,

अै पाँडू धरती तोलणीयाँ॥

अब कसर नयीं, इण भरी सभा,

कपटी ही पूज्या जावैला।

बहुमत रै बळ भूपालां नै,

ग्वाळा ही नाच नचावैला॥

धरमराज रो धरम देख,

धरती वाळो तळ धूजैलो।

समराठाँ छत्र धारियाँ रो,

सूरापो हमैं अमूजैलो॥

कैदी जेळाँ जायोड़ो,

जद भरी सभा नै भायो है।

हूँ खड़यो सामने लाज मरूं

वीराँ रो मुँह कजळायो है॥

धरम धरा रो घिसकै है,

पाँडू कुल ऊँचो आयो है।

चोराँ री चोखी बणगी है,

सूरां में नावँ धरायो है॥

लाज हीण कपटी कूड़ो

तीजै घर लाय लगावणीयों।

रजपूत नयीं है कायर है,

खाँडै नै पूठ दिखावणीयों॥

सो बार सभा में आज खड़्यो,

इण कपटी नै धिर्‌कारूँ हूँ।

ऊँचै आसण अधिकारी नै,

हूँ लानत दे ललकारूं हूँ॥

जै दूध जसोदा रो उजळो,

है कूख देवकी जायो है।

हूँ आज खड़यो खम ठोकूँ हूँ

इण भरी सभा बतलायो है॥

सिसपाळ लाघदी सीवाँ नै,

भिषम जी रो मुख लाल हुयो।

अरजुन रो हात धनुष कानी,

जद बळी भींव विकराळ हुयो॥

गोपाल कयो सिसपाळ राव,

मैं सारा बचन निभा दीना।

थारी जणनी स्यूँ कौल किया,

बै सो अपराध छमा कीना॥

अब सूर सँभल मोटा रावळ,

चक्र सुदरसन आवै है।

उजळापो दूध कूख वाळो,

कहड़ो है, हमैं बतावै है॥

जद सीस कट्यो सिसपाळै रो,

बोलण नै जीभ फड़कती ही।

दँभी मोटै बकबादी री,

धड़ धरती पड़ी धड़कती ही॥

स्रोत
  • पोथी : जागती जोतां ,
  • सिरजक : पड़िहार प्रकाशन ,
  • प्रकाशक : गिरधारी सिंह पड़िहार
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