उण दिवसां री बात छै

म्हैं कंवळी कूंपळ ज्यूं हुवती ही

कंचन काया आईनै मांय देख मुळकती ही

भंवरां री दीठ सूं इणनैं बचाय राखती ही

जद सुणिया सबद थारै मन रा

हरख- हरख कर दरसन री चाव राखती

साम्हीं कदैई नीं पड्यो रे कान्हा!

पण हूं थनैं ओळखती,

मीरां री प्रीत पर ना इतरा रे कान्हा,

उरी प्रीत लौकिक रे कान्हा,

म्हारी प्रीत सूं मत जोड़ी,

तो अतंस में रम्योड़ी

अलौकिक रे कान्हा।

कान्हा! केई बरसां सूं थनैं उडीकूं

भर नैणा रै पाण

जद थूं मिल जावै अेक बार सुपनै में आय,

म्हारै धीरज रो छैह जासी

अणजाणै में म्हारै मूंडै सूं

फगत 'कान्ह कान्ह' निकळसी

जद जग हंसैलो अर

म्हनें गैली राधा कैवसी

पण थूं चिंता ना करजै।

कान्हा! म्हारै हिवड़ै में थूं सदा इयां रैसी,

म्हारी सखियां कैवै,

रैळी-बावळी राधा थूं मन में मोद करै

नैणा में गुमेज भरै कै-

थूं कान्हा री अर कान्हो थारो

होस में आय जा

कान्हो थनें बिसरग्यो

छोड़ थारी अणगाती प्रेम री गळियां

किणी राणी रै मन बसग्यो

इसां सबदां रा बाण कान्हा म्हारै हियै नैं दाझै,

पण थारी म्हारी प्रीत नैं नाजोगा कांई जाणै?

कोसिस रा पग टूट जावै

जद थूं म्हनैं याद करै

थारी अमर प्रेम री सौरम फूलां-फूलां में महकावै,

थारै नैणां रो नेह जणा-जणा में छळकै

पण नैह रो छैड़ो थासूं छूटै कोनी

थारी छिब हिवड़ै सूं जावै कोनी

नई कान्ह, नई!

बात म्हारै हिवड़ै में शूळ-सी चुभ जावै,

पण जद आंकूं थारी म्हारी प्रीत नैं -

निष्काम भावां सूं समरपित हो जाऊं,

नई कान्ह, नई!

थारो म्हारो ब्यांव कोनी हो सकै

क्यूं कै अेक जीव रा

दो अलग-अलग सरीर हां आपां

थूं म्हारो कान्हो है अर म्हैं थारी गैली राधा।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली ,
  • सिरजक : तरनिजा मोहन राठौड़ 'तंवराणी' ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : मरुभूमि शोध संस्थान
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