कियां सहेजां सपना री,

बिखरी लड़ी-लड़ी!

कुण नै देवां दोस? कबीरा-

कूवै भांग पड़ी।

भला बखत हा

थे तो कैयग्या

आखर-आखर अणमोल।

सांच-झूठ

अेक लागै अब

मचरी रांपट-रोळ।

म्हारों डांव आवै कोनी पण,

डांई देता थकग्या

बांरो निसानो चूकै कोनी,

खेलै मार-दड़ी।

चाल-चाल पग थकग्या,

चादर लीरम-लीर हुई।

ढाई आखर भण्यां बिना,

जिनगाणी भीर हुई।

रोय-रोय जद बिथा कही,

म्हैं गीतां में-

सुण-सुण दुनियां मजा लेवै

अर हांसै खड़ी-खड़ी।

कुण नै देवां दोस?

कबीरा-

कूवै भांग पड़ी।

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुणियोड़ी ,
  • सिरजक : मंगत बादल ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी