जाग्योड़ी

आंख रै

सुपनां रै

खेत मांय

अणूतो हंसै

बिजूको।

खुरदरा हाथां मांय

उगै डूंगर।

सूतोड़ो इतियास

जागण लाग जावै—

तद ठंडै अर ताते मांय

नी रैवै भेद,

हाका करतो बगत

किवाड़ खटखटावै,

कविता नै बुलावै।

स्रोत
  • सिरजक : राजेश कुमार व्यास ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी