नानी करी कीड़ी

सढती भीतैं सढी

सढतै सढतै रड़ी

रड़तै रड़तै नीसें पड़ी

तोअे तरत घड़ी

पाछी थई थड़ी

फैर सढी..!

अरे नानी मोटी मगरियें

काची पाकी टापरियें

बोडी बोडी डूंगरियें

बोरियां ना झाड़

डेंडां नी वाड़

बोझाँ ना कांटा

ऊंसा नीसा घाटा

घणा आवी आडी

पण अेने जराअे नीं नडी।

कैमकै नानी करी कीड़ी

पौता नूं नाम धुवू

आपडं निसान लुवू

कुल कुटम्ब नी ओरकैण खुवू

हेंडते हेंडते हुवू

फैल थई नै रुवू

या वअे फरी ने जुवू...

कोअे नथी हीखी

पण म्हैं अेनै मंय

अेक खास खूबी दैखी

नै महनैं तरत खबर पड़ी

कै नानी करी कीड़ी

वगर काम नी फरती नथी

नवरूं काम करती नथी

वाकी वाटै वरती नथी।

बस हीधू हामूं देखतै थके

वअे हवा फेकतै थके

सब सुख संसार सोडी

सालती नूं नाम गाड़ी

अेक'ज दीसा मअें दौड़ी

हेत्ती जंजीरै तौड़ी

हर संकट थकी लड़ी

नैं आखिरकार

अेनै आपडी मंजिल जड़ी

नानी करी कीड़ी

सढती भैतै सढी।

स्रोत
  • सिरजक : छत्रपाल शिवाजी ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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