रिस्वत वो सरकारी चोरी, मुफ्त कमाई लागै सोरी,
झटपट बूध बणै फिर मोटी, फिर भी करै कमाई खोटी।
देखै नहीं न्याव-अन्याव, धन जोड़ण रौ मोटौ चाव,
सानदार बणवावै कोठी, फिर भी करै कमाई खोटी।
नीत-अनीत नहीं तूं देखै, आयो धन लाठी सूं लवै,
पकड़ै दीन दुखी री चोटी, फिर भी करै कमाई खोटी।
घणी दुरासीसां ले चुकियौ, फिर भी है भूखौ रौ भूखौ,
लारै लागै लेकर सोटी, फिर भी करै कमाई खोटी।
बुरी गरीबी री है हाय, ईस्वर नै नहीं आवै दाय,
उणरी टीस नहीं है छोटी, फिर भी करै कमाई खोटी।
दिन लेखो लेणै रो आसी, तब करणी रा फळ तूं पासी,
ऊंचसी नहीं पाप री पोटी, फिर भी करै कमाई खोटी।
निबळां नै है घणा सताया, चूंट-चंटू कर वां नै खाया,
बिकवादी चांदी री टोटी, फिर भी करै कमाई खोटी।
उण रा फाटा कपड़ा खौस, फूल्यौ फिरै राळ मन जोस,
धारण होसी थनै लंगोटी, फिर भी करै कमाई खोटी।
जद हिसाब उण धर होवैलो, तड़प-तड़प कर तूं रोवैलो,
किस्मत आखिर होसी फोटी, फिर भी करै कमाई खोटी।’ 
स्रोत
  • सिरजक : जयनारायण व्यास ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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