क्यूं जी,

कठी छै भ्रष्टाचार?

बता तो द्यूं

पण

पैली

पांच को नोट ला...।

स्रोत
  • सिरजक : प्रेमजी ‘प्रेम’ ,
  • प्रकाशक : कवि री कीं टाळवीं रचनावां सूं
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