भाठा री दुनियां रो

अेक भाठो

म्हैं जोवूं हूं

जुगां सूं-

उण छैणी-हथोड़ी नैं

जिका

तराश’र म्हनैं

अेक मूरत बणा देवै

अेक साचै मिनख री

अैड़ी मूरत बणावण वाळा

कठै गुमग्या बे हाथ?

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली ,
  • सिरजक : पुनीत कुमार रंगा ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी साहित्य-संस्कृति पीठ
जुड़्योड़ा विसै