डावा स्याणा

मिनख कैवै

कविराजा खेती करो

हळ सूं राखो हेत

अर

गीत जमीं मांय गाङद्‌यो

ऊपर राळो रेत।

जद

पेट मांय रोटी नीं हुवैI

तो किस्या गीत-संगीत

कविता, छंद कै अलंकार ?

किसी पायल री झणकार ?

भूखा पेट भजन होसी गोपाला।

ले थांरी कंठी माळा अर दुसाला॥

भूखां रै घर रो दिवलो

अंधारा मांय बुझै

कविता लिखणों कोई धंधो तो कोनी।

जिणसूं पेट री लाय

बुझायी जा सकै

पण

मिनख स्यांति तो पा सकै।

स्रोत
  • पोथी : बिणजारो 2016 ,
  • सिरजक : श्यामसुन्दर टेलर ,
  • संपादक : नागराज शर्मा ,
  • प्रकाशक : बिणजारो प्रकाशन पिलानी
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