लोक कैवै

खेजड़ी री जड़

पाताळ तांई हुवै

अर बा

पाताळ सूं

इमरत खैंच’र

भरै उन्याळै में

खड़ी रैवै

अर

हरी रैवै

पण

कांई ठाह तूं

कठै सूं

पावै इसो इमरत

कै

सारी उमर

भोर सूं सिंझ्या तांई

खड़ी रैवै

अर

हरी रैवै।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली लोकचेतना री राजस्थानी तिमाही ,
  • सिरजक : आशाराम भार्गव ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी साहित्य-संस्कृति पीठ
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