हूँ मल्यु मने आजे
हात हात सोरँ नो बाप बणीने
परेशानी, चिन्ता ने उदासी
जंगली अमर बेल वजु वदतो ग्यो
फलतो गयो परिवार,
ने खाई ग्यौ-
पेड़ न फूलं, पत्तिये, टहनिये, डालिये।
हवे
बणी ग्यो हूँ एक ठूँठ
सोरं ने जुवे
खावा बल्ले अन्न
पेरवा सेत्रं
भणवा किताबे
ने मांदगी में दवा।
टूँकी तनखा
ने परिवार मोटो,
हेते पुरू करवु
हवे विशार थाये है
केटलु ताजु थातु
हात-हात ने बजाय,
एक के बे सोरं होतं।