चाह नीं है म्हैं छप ज्याऊं,

रद्दी में फेर लुक ज्याऊं,

चाह नीं है मोटी पोथी रा,

पानड़ां तळै दब ज्याऊं,

चाह नीं है मंचां रै माथै,

जोर-जोर सै गायी ज्याऊं,

सोभा बणूं जळसै री,

घणी भाग्य पै इठलाऊं।

मांडो म्हांनै हिवड़ै री कलम सूं,

भावां री स्याही ढुळकावो

सरल-सहज ही मांडो म्हांनै,

बिण छंदां रै लाग लपेटै

छप ज्याऊं जणमाणस में

काळजयी कविता बण ज्याऊं

देसप्रेम री लहर जगाऊं

क्रांति री ज्योत जळाऊं

मां भारती रो तिरंगो बण लहराऊं।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली ,
  • सिरजक : सीमा राठौड़ ‘शैलजा’ ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : मरूभूमि शोध संस्थान राष्ट्रभाषा हिन्दी प्रचार समिति
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