कविता करणी व्है
तो करजो!
धूवादी उरड़ती
काल़ोड़ी कांठल़ में
भूरड़ै भुरजां में
नागण सी
वल़ाका खावती
काल़ रो माथो किचरण
अंतस में उमंग
पल़कती बीजल़ री।
करजो थे कविता,
करणी ई व्है!! तो
टीकी -टमकां
टूम-छल्लां
कै खणकती
कचकोल़्यां
कै
पंचरंगै पोमचै
कै
रूप रै रसिक भंवरां नै
मोहतै लहरिये रै
उडतै पल्लै रो लोभ त्याग
कंत रै साथै
कसी ,कंवाड़ो
दातरड़ी सू सजी
परांछ चाढण रै उछाह में
खांमद रै खांधै सूं खांधो जोड़
भणंत रै भणकारै
मीठोड़ै गलवै रै रणकारै
आगैडाल़ लंफती
उण रूप री रंभा
ताप में तपी तपसण
कै
केल़ू री कांभ सी
उण कामण री।
कविता करणी व्है तो,
करजो
भूख सूं जूझतै
अड़बड़तै कै
किल़बिल़तै कीड़ां सा
जीवण रै जाल़ में
अल़ूझ्यै बापड़ै मानखै रै
आंतरां रा सल़ देख
काढण रै जतनां री जुगत
कै तोजी करजो इण
आखरां रै ओलावै।
कविता करणी ई व्है तो करजो!
अंतस रो खारास
आंख्यां में दीखती
नफरत कै घृणा
कै
एक दूजै रो लोही
बूक मांड
पीवण री बाण
छोडावण सारू
करजो
मिटावण री राग
काल़जै री ऊंडी कोर सूं
कै हेत रै हिंवल़ास
पूंछण नै आंसू
अपणायत रै हाथां
मिनखपणो मंडण
अनीति भंडण रा छंद
उपजावण आणंद
करजो तो खरी,
कविता।
कूंतजो कविता री
आखर ताकड़ी
तोलजो संवेदना रै बाटां सूं
उण सिंदूर री कूंत!
जिको मिटग्यो
देश री सीम
कदीमी कायम राखण नै
हरोल़ रै भूटकै
तिरंगै नै आभ में ताणण री ललक लियां।
करजो तो खरी कविता में
उण जामण री कूख रो मोल
जिणमें लिटियोड़ो
आयो तिरंगै लिपट्योड़ो
भारत रो मोद मंडण नै
धरती री गोद में सूतोड़ो
करजो इणरी कविता!
जिणरी वीरत रो साखी सविता।
करजो तो खरी
घर में चहचहाती चिडकलियां री
उमंग रो वरणाव
जिणां रै चुगै रै प्रताप
टल़ता रह्या है थांरोड़ा संताप
करणी ई व्है तो करजो कविता!
इण अड़ीखंभ ऊभै फल़सै री
जिको राखतो रह्यो है
टणकाई री टेक
पावतो रह्यो है
पही नै राबड़ी
गवाड़ी रो गीरबो
कायम राखण कै
आपरी आखड़ी रै पाण
आण नै कायम
काण नै साईजम राखण नै।
करजो इणरी कविता
करणी ई व्है तो
हिम्मत री हेड़ाऊ
घर सामण री
जिण आपरै मुचतै
गवाड़ी रै झूंपड़ै
थूंणी सी तण
आपरै सीस
झालियो है थांरोड़ो भुजभार
वेर -उवेर
थांरोड़ै घर री अंवेर
वेल़ा -कुवेल़ा
टाल़ती रैयी है
फैंट फैंटोड़ां नै
करजो इणरी कविता
जिण नीं मूचण दियो
थांरोड़ो माण
आपरै आपाण
गाल़ दियो जोबन
थांरोड़ै जोबन री रुखाल़ी सारु
करणी ई व्है तो करजो
इणरी कविता।