पसरयोड़ो

धरती रै ऊपरां

अभेद आभौ

इणनै भेदै कुण?

किणरै मांय

हुवै इत्ती सरधा

पून पधेड्याँ

चढ़'र जाय सकै

इणरै पार

सूरजी रौ थाम'र

भाजतौ रथ

सात घोड़ियाँ वाळो

बतळा लेवै

चिलकतै चाँद नै

पळपळाट

करतां तारियाँ नै

बुचकार ले

सगळां टंटोळ'र

नक्षत्र-ग्रह

नीळी छतरी लारै

हांड-हंडा'र

इंदर रो आसण

रगदोळ'र

कुचरनी कर'र

सभा रै मांय

देवतावां बिचाळै

कवि रै जियां

जकौ ज्यावै पाछौ

जमीं ऊपरां

घड़ी दोय रै मांय

जात्रा कर'र

सुरग-नरक री

बिन्यां भाडै रै

अपणायत रै पाण

मन रै मतै

अंतस सूं अणंत

अंतरिक्ष री

सबदा रै कारणै

कविता रै मांयनै।

स्रोत
  • सिरजक : घनश्याम नाथ कच्छावा ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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