कोरौ चितराम उभार नै
अळगौ व्है जावणौ
वस्यौ हीज है
जियां आंगळी काट नै
ईलाज नीं करणौ।
माटी रा दीवड़ाला चासणै सूं
अन्तस में उजास नीं व्यापै
कोरी योजना सूं
फळ नीं मिल्यां करै
विंया ही
कोरौ चितराम उभारणै सूं
साहित्यकार रौ धरम पूरौ नीं व्है ।
कवि!
थनै दरद रै साथै
गेलौ भी दरसावणौ पड़सी
खुद भलै ही घुटतौ रैव
दूजां खातर जीवण जीवणौ पड़सी
औ ही थारौ धरम है
औ ही साहित्य रौ मरम है।