आळस त्याग’र
काम तो कर सकां धपाऊ
धक्को-धक
पण कविता…
ना भाई!
कविता तो उपजै
जियां फोगां-बांठां बिचाळकर
डचाब
का फेर ढळ जावै
जियां टोकी आळै धोरै माथै सूं
झीणी-झीणी रेत
का फेर
तिसळ जावै
जियां कादै मांय
भोळो पग।