बै पूछै आज रै जमाना में

कविता क्यूं?

म्हैं उणा में पूछूं

जिंदगी भी क्यूं?

कविता अर जिंदगी सूं बड़ी

हुयगी चीजां

कविता अर जिंदगी नै

खड़ी कर दी कूणै में

आज रो बाजार।

बै पूछै

कवितां आपां नै कांई देवै?

भौतिक सुख या विलास री चीजां

म्हैं पूछूं

हवा आपां नै कांई देवै?

पाणी आपां नै कांई देवै?

कोई कंडीसनर कार या हवाई जहाज

बै पूछै—

कवितां नै आज जिंदा रखणै री तुक?

म्हैं पूछै—

मिनख नै जिंदो क्यूं राख्यो जाय

जद के उण रो अस्तित्व तो आज मटियामेट है

म्हैं बतायो—

जिंदगी कांई-कांई नी सह्यो?

आदू जुग सूं लेय’र आज ताईं

बिरखा, तावड़ो, पिरलै

अत्याचार अर मिनखां रो नाम

पण पछै भी जिंदगी है

अर आगै बढ री है

सगळी बाधावां नै मेटती

सूरज री दांई चिमकै

कविता

लगोलग बैवती जिंदगी

नी मर सकै

क्यूं के मिनख रै कनै है मन

कोनी मर सकै कविता

क्यूं के बा आदमी रै

मन सूं उपजै।

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत ,
  • सिरजक : कृष्णबिहारी सहल ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर
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