कविता वा जाणियै, जन मन भरै हुलास।

ज्यूं बाती तन बाळ कर, आंगण करै उजास॥

जनम भोम रे कारणै, हंस हंस दीना प्राण।

सांची कविता चाव सूं, बांरा करै बखाण॥

दुखिया जन री पीड़ नैं, देवै वाणी बोल।

जुलमी नैं ललकार दे, खोलै छळ री पोल॥

के हांसी री पोटली, के पेई भर प्यार।

के सहलावै पीड़ नैं, जीवण रो आधार॥

दुरजन खातर ताड़ना, सज्जन हित सतकार।

सांची कविता में है वै, जनम भोम रो प्यार॥

आशा संबळ दे नहीं हरै जन री पीर।

जनम्यां पै’ली वा मरौ, मिळै जिण सूं धीर॥

बांच्यां मन हरखै नहीं, सुण्यां उपजै राग।

दे सकै जो प्रेरणा, लागौ बीं में आग॥

स्रोत
  • पोथी : मोती-मणिया ,
  • सिरजक : महावीर जोशी ,
  • संपादक : कृष्ण बिहारी सहल ,
  • प्रकाशक : चिन्मय प्रकाशन
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