माथाचूळ रौ मारग
कांई है फगत
अेक खेत रौ मारग?
कै पछै है वीं इतिहास
वीं लोककोथ रौ मारग
जिकै बगै
पीढियां-दर-पीढियां आपणी?
मायतां नै आपरै मायतां
आपां नै आपणां मायतां
अर आपां आपणै टाबरां नै
सूंपता रैयां हां
वौ इतिहास
जिकै रै पांण
गिरबौ करीजै खुदौखुद पर!
पण कांई थूं समझ्यौ कदैई
इण इतिहास नै, इण मिथ नै?
करी कदै गिनार?
कांई जोड़ौ आज रै बगत सूं
करी कांई साच-झूठ री कूंत?
थूं कांई...
म्हैं ई कोनीं करी
मानली बियां री बियां
जियां री जियां सूंपी मायतां आपणां!
माथाचूळ
माथा कट्या उडी धूळ
सिर सटै गोधन बच्यौ,
जूझार बणै, जस सूंपै
कीरत-बखांण...
बस्स!
कांई बस्स?
इत्तौ ई है इतिहास!
कूड़ के साच?
पण करी कांई गिनार?
मांणस नै बचावण सारू
मांणस कदै नीं पच्यौ,
मांणस नित कौतक रच्यौ!