सगती वाळा,

कठपुतळी

ज्यूं नचावै है।

कमजोरां नै

कोई नीं पूछै,

सगती वाळा नै

सीस नवावै है।

भूखा मरै है

कमजोरा बापड़ा,

सगती वाळा

मौज मनावै है।

सगती रै

बळबूतै माथै,

क्यूं कमजोरां नै सतावै है।

आज जमानो

सगतीवाळां रो,

कमजोर ठोकर खावै है।

करो मती गुमान

सगती रो,

माटी रो तन

माटी में मिल जावै है।

गळै लगाओ

कमजोरां नै,

मिनख जमारो

पाछो कदैई नीं आवै है।

स्रोत
  • पोथी : नेगचार पत्रिका ,
  • सिरजक : तारा ‘प्रीत’ ,
  • संपादक : नीरज दइया ,
  • संस्करण : अंक-17
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