कठी छै प्रीत

म्हनै भी तो पड़णी चाह्वै तौल

कै कीं भांत को होवै छै

प्रीत को उणग्यारो।

उठी छै प्रीत

चंदण का रूंख पै

बळभेट्या खातो बासक

अेकटक चांद निरखतो

चातक

ठूंठ का माथा पै

दो नूंवी तीव्या की फूटैड़

साळ में रंभाती गाय की

आफळ

प्रीत म्हं तो कांई छै।

और भी जाणै कतना

उणग्यारा छै प्रीत का

कांई का रांवा ज्ये बगतसर

झांकल्या म्हैलाडी

देखल्यां आपूंआप

डील में छानमून बहती

हेत की नदी।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली ,
  • सिरजक : ओम नागर ,
  • प्रकाशक : राष्ट्रभाषा हिन्दी प्रचार समिति श्रीडूंगरगढ