कोरो कुणरौ कसूंबो जायौ।
सुगणों कियां कसूंबो आयो॥
घणा जतन सूं आयो होसी
सात पीढ़ियां पांणी
देव घणा ही धोक्या होसी
भर मीठी गुड़-धांणी।
दुख-सुख री पोथ्यां रट-रटकर
सांस-सांस में बांची
पाळ-पोस कर मोटी करदी
मायड़ मन री सांची।
जद जाकर कै खिल्यौ कसूंबो
हेत घणा सूं पायौ।
सुगणौं कियां कसूंबो आयौ॥
मोटी होयर हुई पराई
टॉक कसूंबो आई
सासू जी-सुसराजी नै क्यूं
फूटी आँख न भाई
जेठ-जिठाणी नणद-नाराणी
सब पूछै कै ल्यायी
बालम भोळा उळझ्या सब में
आखड़ल्यां भर आयी
कोरा कसूंबा पर कुण बैरी
डंक दहेज चुभायौ?
सुगणो कियां कसूंबो आयो॥
ग्यान दियौ दादी-दादा जी
रुप दियौ माता जी
तेज दियो भोळा बापू जी
स्वाभिमान वीरा जी
त्याग, रसोई, प्रीत सिखाई
भोजाई सुगणा जी
सीणौ-बिनणौ, पढ़णौ-लिखणौ
टीचर जी ‘पूरणा जी’
हथळैवा में हाथ जोड़कर
होगी हरख पराई
सैंस जलम मरबा-जीबा की
सोगंध फिर-फिर खाई
कांई कसर रैगी देबा में
सब पूछै कै ल्यायी
दूध म विस री मेल पोटली
कुण दस्तूर बणायौ?
सुगणो कियां कसूंबो आयौ॥