दूहो

करुणाकर कीनी कृपा, दीनी शुभकर देह।
तातें मनवा फिकर तज, नित कर गिरधर नेह॥

छंद रेंणकी

धर अम्बर सधर अधर कर गिरधर, जग सुर नर अहि नाम जपै।
झंगर गिर सिखर सरोवर निरझर, तर तटनी मुनि प्रवर तपै।
सुन्दर घनस्याम विसंभर श्रीकर, भूघर नभचर उदर भरै।
मत कर नर फिकर सुमर मन मधुकर, करुणाकर भव पार करै।
 (जिय) करुणाकर निस्तार करै॥1॥

मधुसूदन विघन हरन मनमोहन, सुमिरन कर मन क्रिसन सदा।
वृंदावन धेनु चरन ब्रज विहरन, मगन लगन मुरली प्रमदा।
लोचन सुख सदन मदन अवलोकन, आनंद घन जन-जन उचरै।
मत कर नर फिकर सुमर मन मधुकर, करुणाकर भव पार करै ॥2॥

जनहित अवतरित सहित जग-जननी,रूप रमापति मुदित रचै।
नटवर चित चरित करित चक्रित नित,निमित नाग द्रह अमित नचै।
कुंडल झलमलित ललित मुख आकृति, सूर उदित जग विदित सरै।
मत कर नर फिकर सुमर मन मधुकर, करुणाकर भव पार करै ॥3॥

बरखा रितु विटप वल्लरी विकसत, महक मंजरी पुसप मही।
वप मलतप भरत चौकड़ी वातप, सूरज आतप अलप सही।
कुदरत -पत मोर छत्र मंडप कर, धरनि रूप द्रुमकलप धरै।
मत कर नर फिकर सुमर मन मधुकर, करुणाकर भव पार करै ॥4॥

छप्पय

करुणाकर करतार, जगत आधार सु जानौ।
प्रकट भक्ति पतवार, पार संसार प्रमानौ।
केशव नन्दकुमार, धार चित में नित ध्यावै।
वाके घर परिवार, अवसि सुख अपार आवै।
मुरलीधर माधव मोहना, धेनु चरावन गिरिधरन।
कर जोरि कहत 'शक्तेस' कवि, सुमिरहु मन असरन-सरन॥
स्रोत
  • सिरजक : शक्तिदान कविया ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी