कहणी कांई करतूतां, मूढमत्यां की

ऊभा बगन्यासा हाथ जोड़

जाणै, जाणता नं होवै कांई बी

भौंजक बण रह्या

करणी तो देखो कुबद्यां की

ऊभा जूत्यां खोल, नोहरा खा रह्या

धूंपेड़ा जो रह्या जोत बाळ रह्या

पूर रह्या घी पीपा का पीपा

काट रूंखड़ा ज्यांने

नास करी बनराई सारी

ऊभा वेही हवन के आगे

गठजोड़ा जोड्यां

कर रह्या अरदास

आस चौमासा की

तंतर तो देखो जाण जुगारां का

जुगतां तो देखो बेख्यां की

सूनी कर रह्या सृष्टी नितकै

एकक तुणकल्यो तक नं छोड्यो

सारा कांकड़ नमटाद्या

बच्यो नं चळ्ळू नीर नंदियां में

धधक रही बनखण्डी च्यारूंमेर

चेत रही चण्डी

झकझकती झाळ हिया मं

उगले धूंधाड़ो दिन रात

हाय, सबदां की पड़री

घुळतो जा रह्यो जहर बा’ळ मं

मन्दर की परकम्मा तक नहीं बची

बैठ सके मनख ज्यां निरांत सूं

घड़ी भर बैठे कहां कुणसी ठांव

छांव बची नहीं पूरा गांव मं

बच्या नहीं भगवान मुरत सूनी छै

रह्या नहीं बिराजमान

फेर बी ठोक्यां जा रह्या झालर-घण्टा

चोट तो देखो हिया फूट्यां की

कद खोलेगा यांकी आंख्यां करतार

राम जाणे कद सुध लेगो

यां करमां सूं

पतर्‌यां तो बांचो कोई यां बपत्यां का करमां की।

स्रोत
  • पोथी : आंथ्योई नहीं दिन हाल ,
  • सिरजक : अम्बिका दत्त ,
  • प्रकाशक : बोधि प्रकाशन