भायला

सबद तो तू बड़ा लूंठा

बोलै है,

विचारां सूं आपणै

सगळै जगत नै

तोलै है।

पर बिना क्रियान्विति रै

अै सबद अर विचार

सूखा ठूंठ सा लागै है,

करम रै बिना बावळा

कीं रो भाग जागै है।

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत मई 1995 ,
  • सिरजक : महेन्द्रसिंघ महलान ,
  • संपादक : गोरधन सिंह शेखावत ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर
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