भीतां अर अडगाळ्यो बोल्यो-

बोल्यो घर को आँगणो-

चालो रै, चालो रै, चालो रै,

माँ पायो दूध उजाळणो।

धरती का धूळा को करजो पाटणो॥

पळस्या पै बैरी जद खाँडो भाँजतो

थारी धाभी घरती नै ललकारतो

आँगण-आँगण माँड रगत का मांडणा

महाभारत को फेरूँ ताणो ताणतो

अरजन, भीमा फेरूँ सस्तर थामो रै'

मैलायो गंगाजळ आज नखारणो।

धरती का धुळा को करजो पाटणो॥

तुळसी थाणाँ मै बारूद, बज्यार दी

दूधा सा दाताँ पै साँग उतार दी

हथळेवी मेंहदी पै धर्या अंगार रै

दमकंता मूँडा पै झायाँ झार दी

झांसी, गढ़ मंडळा की जोतां जागो रै

भर्या अँधेरा को काळो सब काटणो

थरती का धुळा को करजो पाटणो॥

स्रोत
  • पोथी : थापा थूर ,
  • सिरजक : गौरीशंकर 'कमलेश' ,
  • प्रकाशक : ज्ञान-भारती प्रकाशन, कोटा