आत्मा बोली कल्याणी, सुगणा धांन की।
करसा थारी कमाई, गीता ग्यान की॥
सूरज उग्यां सूं पैली तूं ही ऊठतौ
थारी मूंडो देख्यां सूं सूरज टूठतौ
पत्थर-कंकर में परभाती सुर छूटतौ
जग रौ अंधियारौ, उजियाळा में फूट तौ
माटी मुळकी मिलण-सूं मीठा धान की।
करसा थारी कमाई, गीता ग्यान की॥
सत् री गीता रौ तूं ही सांचौ सारथी
मंगल गावै सदा ही थारा भारती
थारी नियत-पर नियति सोनौ वारती
वीरा कियां करूँ रै थारी आरती
थारी किरपा-पर अटकी बोली मान की।
करसा थारी कमाई, गीता ग्यान की॥
तप-बल सारी उमर दुख-सुख में काटतौ
सारी दुनियाँ नै हीरा-मोती बांट तौ
मोठ-मक्का नै मिंदर-मस्जिद मानतौ
मायड़ धरती री महिमा तूं ही जाणतौ
सीदी-सादी सत्वाणी थारी शान की।
करसां थारी कमाई गीता ग्यान की॥