जद तांईं धरती गगन रैवैला
चांद-सूरज तो चमकैला
जो आंरा उपगार भूलज्यै
जीवण सफल कुम करदै’ला...?
बांरो...?
धरम निभावै अजै कूकड़ा
बांग देवै सागी-टेमां
मुल्ला-पण्डित रैया नीं अैड़ा
धरम निभा सकै धरम लेखां।
नंईं धरम...॥
धरती माथै जलम-मरण हुवै
सबद गगन सूं पावै है
चांद-सूरज री सीख जबर
नंईं पण्डत-मुल्लां में आवै है...।
सुवारथ रो धरम चलावै है...॥
धरम नैं मुल्लां कर्यो खोखळो
पण्डतां री बात्यां-छोड़ो
धरम रै सागै राजनीति कर
कर काढ्यो जीवण कोझो...।
जकां कर...॥
सुवारथ रा फलका फैंक-फैंक
लालच रो लगावण राखै है
डर-डाकर री तोड़ सीमा
मायड़ रो मांण घटावै है...।
म्हारै देस रो...॥
प्रीत पराई काम आवै नीं
खुद ही संभाळो खुद रा भाग
मुल्ला-मौलवी, पण्डत-पुजारी
छोड़ चुक्या है धरम रो ताग...।
धरम रो छोड़...॥
जद तांई...