कांई चावै है मां?
फगत इत्तौ इज के
ढंगसर है
टाबरां री देखभाळ...
बिगड़ नीं जावै
वै धूळधाणी
चाल नीं पड़ै कठैई
बेढंगै मारग!
आंगळी नीं उठावै
कदैई कोई उण री
औलाद रै साम्हीं
रैय नीं जावै
औलाद में खामी...
बासी-सूखी खायनै ई
काढ देवैला जमारौ
फाटा-टूटा पैरनै ई
कर लेवैला संतोस
ऊगतां ई सूरज
मां हरमेस
घर रै कचरा-कूटा साथै
बुहारनै साफ करै
दुखां री ढिगली!
भणी नीं व्हौ भलांई
अेक ई पाटी
मा जाणै
छोरा भणैला तो
कमाय खावैला काची-कोरी
अर छोरियां री जूंण
व्है जावैला सोरी।
कांई मांगै है मा?
फगत इत्तौ इज के
बेटा संभाळ लेवै
अकल-हुसियारी
ऊभा व्है जावै
पगां माथै
मैणत रै पांण
कमाय लेवै
दो टंग री रोटी
कै बेटी नै मिल जावै
घर सरीखो घर
खावतो कमावतो वर
पीळा व्है जावै
उण रा हाथ
आपरी निजरां साम्हीं!
कांई अरदास करै है मा?
फगत इत्ती’ज कै-
दूजा रै घरां अंधारो करनै
मत करजै म्हारै
घर में उजियाळो
दूजा रै निसासा माथै
मत पूरण करजै
म्हारी आस...
दूजा रो हरख
कोसनै मत करजै
म्हनैं राजी!
दूजा रा
भंडार भरनै इज
कर सकै तो
करजै म्हारै
घर रो विचार...
कांई कैय सकां
कांई देय सकां
आपां मा नै?
बचाय सक्या
उण रै दूध री लाज
धरती रो म्यानों
बच जावैला आपूआप।