आज री आपा-धापी

अर उठा-पटक में

मजलां मुड़गी,

कविता कुड़गी!

बापड़ी कविता

कुण सै बिल में बड़ै?

कुसंस्कारां री कुबध में

नेकी अर नफासत रा

उपदेसां अर सुसंस्कारों रो

बाजो पार नीं पड़े।

कविता नै काण-कायदा

छोड़णा पड़सी।

अलंकार अर छंदां रा बंधण

तलाकणा

अर तोड्यां सरसी।

पाताळ तोड़ तळघरां में

तहजीब

अहिरावण ज्यूं बड़ै

अर मेघनाद री जियां

अभिनव संस्क्रति

असमानां अड़ै।

कविता नै भी

सरम संको

अर मरजाद मूक'र

पाबंदियां

त्याग्यां सरसी!

कविता तो कविता छै

कांई नुंवीं

अर कांई पुराणी?

आतमा में उगै,

जीभ सूं जुड़ै

अर सबदां रै

सांचै में ढळ्यां पछै

वीं रो स्फोट हुवै तो

कविता री कूवत

अर मार कुराणी।

आवो,

आपो

कविता रो बहुंजिलो कॉम्पलेक्स

चिणां अर खड़्यो करां।

वीं पर

ऊंचा चढ़’र

आज रै खलक-फलक रो

आलम अंगेजां।

आप आप रा पैगाम-परचम

कबूतरां रा पंजां में

बांध'र

अलख आंतरां री

उडाण खातर

आगै सूं आगै

सुदूर दिसावरां

अर विदेसां भेजा!

कविता

लूली-लंगड़ी कोनी

क’ कांकड़ां-कांकड़ां

हर हर करती हांडै,

कदे सरावै

तो कदे भांडै।

आकड़ा नी चरै कविता

बकरड़्यां री दाईं,

गैला गुवाळिया अर गडरिया

नीं हांक सकै कविता नै

भेड़ ज्यूं

कदे बाईं

तो कदे दाईं।

काळजयी करामात छै कविता

जियां वेदां रा भगवान सविता

ऊग्यां पछै हे‌र्‌यो नीं लाधै, अंधारो,

स्रस्टी रो सरोकार साधै।

कविता रो सऊर-सलीको छै

सारथक सबद,

अर हर सबद रो

पूरो पाठो अरथाव छै

सारथक सिरजणा।

कविता भार अर विचार री

राती-माती रळियामळी छै

जीं में

वरतमान समचै

अतीत अंगीजै

गौरव रै गिरवै री

गूंज बण'

अर भविस रो उजागर आभो

अवनी पर बिराजै

उजास रै आसै-पासै

खितिज रै धुंधळकै नै

धोवतो,

निचोवतो

अर आदरस

उगेरतो सो लखावै

कविता रो कैनवस।

कविता री कूवत-कमज्या

तिकाळदरसी

अर मरम-स्परसी मानीजै।

बोली,

भासा

अर मजहब-धरम री

विभाजक सींवां में,

गहरी गज-नींवां में

कविता नै कोई

कैद नीं कर सकै।

वा हुँकारा भर-भर नै,

हुकमरानां री हामळ नीं भर सकै।

कविता कुर्सीखोर कोनी

क' कुर्सी नै तोड़ै,

अर नित-नुंवै नातै री

चूड़ियां तेरीका फोड़ै।

कविता-काळजयी करामात छै

जुग-जयी जीवट री

जीं सूं मानखै री मजल रा

मारग मरजादीजै,

गीतड़ां अर भींतड़ां रा

मुरतब मांडणा मांडीजै

जस-कीरत री मारफत

अर अस्मिता आदरीजै

जुग-जुग रो जथारथ।

कविता

जनपद रा

जन-कवियां री

जाण-पिछाण छै

जिकी जुगां जीवै

बातों में,

अखियातां में

अर तवारीखी तर-तर तांता में

आंतरा अंवेरती

ओळखाण उगेरती

अर परंपरावां रा

पसवाड़ा फेरती

टीबां अर टेकड़्यां नै

टिचकार्‌यां टेरती।

कविता हेज छै

हेत रो,

रेत रो

अर खेत रो।

मानखै री मरजाद छै कविता,

मिनखाचारै री बुनियाद छै कविता,

सूगली सियासत सूं

सरोकार नीं कविता रो।

कविता कैद कोनी,

आजादी छै

आबादी छै

पण, आवारागरदी कोनी।

कविता में परतख

अलख आंतरा

परबारा परिवेस भांत-भांत रा

अर सिरजण रा स्वाद सांतरा।

पहरा नीं जात-पांत रा,

खाम खयाली खुराफात रा

अर अंधेरगरदी री रात रा।

कविता काण-कायदो छै

कळा अर कळवंतां रो,

कविता आण छै

अस्मिता अर औकात री।

कविता गेलो छै

मंतव्य अर गंतव्य रो

कविता हेलो छै हलकारां रो

आगीवाणां रो

अर आतंक नै उपाड़ता घमसाणां रो।

कविता आस’र अहसास छै

विवेक रो विस्वास छै

अरज अर अरदास छै

कवित्व रो,

अस्तित्व रो

अर व्यक्तित्व रो।

कविता में कोनी खतीजै

कुचमाध री बाण-कुबाणां

बेअरथी बहस रा ब्याना

अर हरामखोर हाणां।

कविता में कोनी पतीजै

आळ-अदावट,

छदम-छळावट,

लाग-लगावट,

फगत बणावट

बैर भाव री

कविता परख-पजोख छै।

कविता मिठास अर ओज छै।

महमाई मौज री

खुसूसी खोज री

अर जीवट जमीन्दोज री

सोध छै कविता

बोध छै विवेक

अर परम्परागत पौध रो कविता

कविता चराचर नै

बाँटै अर फाँटै कोनी,

कविता छाँगै अर छांटै,

काटै कोनी।

कविता डांटै,

पण नाटै कोनी।

कविता जीव-जमारो छै,

घास-फूस रो भारो नीं।

कविता मिनखाचारो छै,

जड़-जंगम रो गारो नीं।

कविता गेलो छै

कविता हेलो छै

हिमळास रो

अर भविस रै आभास रो

आवतै आकास रो।

कविता वरतमान रो

वर्चस्व छै।

अतीत अर व्यतीत रो

सर्वस्व छै।

कविता सविता छै

अमावस रो अंधेर नीं

अंधारघुप नीं।

कविता चेतना री चरचा छै,

मसाणिया चुप नीं!

आवो,

आपां

कविता री जड़ता नै तोड़ां

मजल-मारगां

धर कूचां

धर मजलां मोड़ां!

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत ,
  • सिरजक : भगवतीलाल व्यास ,
  • संपादक : भगवतीलाल व्यास ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ,
  • संस्करण : अंक – 5
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