बाट निहारै मरुधर थारी
आओ काळी बादळी।
प्यासी धरती आज पुकारै
आओ काळी बादळी॥
प्यासी धरती, प्यासा मरुधर,
मिनख पखेरूं प्यासा तरवर,
तपै तावड़ो शिखर दुपहरां,
अम्बर सूं अगनी बरसावै,
सूरज री किरणां तड़फावै,
उमड़-घुमड़ बादल बण जावो।
आओ काळी बादळी...
भूखा प्यासा फिरै जिनावर
सूखा सारा खेत है
आंधी अर तूफान रै संग में
उड़ै सुनहरी रेत है
थांरी आस लगायां बैठ्यो
धरती रो किरसाण है॥
आओ काळी बादळी...
धोरां रो सिणगार पुकारै
खेजड़ला अर फोग पुकारै
मिनख गया परदेश है
झर-झर कान्ता नीर बहावै
धर जोगण रो भेष है॥
आओ काळी बादळी...
उमड़-घुमड़ नभ में छा जावो
अम्बर सूं इमरत बरसावो
मोठ बाजरी और काचरी
खेता में इतरी उपजाओ
मिनख जिनावर रैवै नी भूखा
आओ काळी बादळी...