उडज्या री काजळ बादळी तू

उडज्या री- हिमळा-छोर

म्हारो हिवड़ो लड़ै छै रण में

छाज्या ज्यै री घणघोर

उडज्या री हिमळा छोर, छाज्या ज्यै घणघोर!

म्हारै आंगण मती बरसज्यै

मती बरसज्यै री बाग

म्हारो कांकड़ छोड उडज्या

घरां नहीं छै सुहाग

हेरलै ओठां ही ठौर- बरसत ज्या घणघोर!

उडती-उडती बादळी जाज्यै

जठै लड़ै छै दैस री फौज

म्हारो सुहाग तूं हेरज्यै वां में

करज्यै सांचाई खौज

बरसत जा घणघोर, उडज्यारी हिमळा छोर!

थोड़ो बरसै, घणो निपज्यै

मच जावै ने गारो-कीच

हरक उठै री म्हाकी फौजां

हिवड़ो री जावै सींच

ले जारी प्रेम की डोर, उडज्यारी हिमळा छोर!

सीत सूं फौजां थर-थर कांपै तो

होज्या ज्यै नीलो अकास

धूप खुवाज्ये सुवाणी-सुवाणी

कर दीज्यै भानु पकास

जीं सूं दुगणो जासी जोर, उडज्यारी हिमळा छोर!

लू ज्यै बागै तो आडी होज्यै

तातो ने होवै री डील

बैरी ज्ये आवै तो चौकस रीज्ये

नेक ने करज्यै री ढील

बैर्‌यां के मच जावै होर, उडज्यारी हिमळा छोर!

मोटा-मोटा गड़ा पटकज्यै

बैर्‌यां को हो जावै री मसाण

रणभूमि सूं बैरी भागै

जीतै री म्हांका जवाण

जद बागां में कूकैगा मोर, उडज्यारी हिमळा छोर!

म्हारो संदेसो लेज्यारी बदळी

बेगो ही लारी समचार

बहण्यिं का भाई मां का बेटा

म्हारी मांग का सरदार

दरसण द्यो चित्तचोर, उडज्यारी हिमळा छोर!

बेगौ संदेसो लाज्यै री बादळी

हींडो घला द्यूंगी बाग

आरती उतारूंगी घर के मंगरां

थारी भी भराद्यूंगी मांग

अमृत पुवाऊंगी ओर, उडज्यारी हिमळा छोर!

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत अगस्त-सितंबर ,
  • सिरजक : रशीद अहमद पहाड़ी ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृत अकादमी, बीकानेर
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