कागदं नी वातें घणी मूटी

मनक वतं ज़े काम न्हें थाय

कागद करी दे

एक थीकड़ू लगाड्या वना

कागदं मांय रोड़ बणी ज़य

एक ईंट माड्या वना

कागदं मांय घोरं बणी ज़य

एक फूट खाण्ड़ो खूत्र्या वना

कागदं मांय कुआ खूतराई ज़य

कागदं नी माया मूटी

कागदं'ए मनक मंतराई ज़य

भले अनार नो 'अ' न्हें अवड़े

पण कागदं मांय पास थई ज़य

काम करिया वना'ज़ कागदं भरी

घणा आदमी खास थई ज़य

आपड़ी जागरूकता न्हे होवा थकी

वेपारी मुड़े माग्यो भाव करैं

कागद नी रसीद मांगी लो तो डरैं

कागदं वाटी-वाटी ने

एक डाकियो ज़ीवे

कागदु बणी ज़ाय होची ने

एक करमचारी बीवे

कैवाय तो कागद

पण आनी ताकत देखो

होसियार बी पाणी भरैं

कागद नी हरी नोटे फैको।

स्रोत
  • सिरजक : विजय गिरि गोस्वामी 'काव्यदीप' ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी