खेत बिकग्या

इण रै ताण

जूण रा

अबखा दिन

कीं धिकग्या

अब तो कोरां

कलम रै हळ

कागद रै खेत

मन री फसलां

पण

आं खेतां

कद लागै फळ

आं माथै भंवै

आलोचना री लूआं

गुटां री त्रिजटा।

स्रोत
  • पोथी : थार सप्तक 6 ,
  • सिरजक : हनुमान प्रसाद 'बिरकाळी' ,
  • संपादक : ओम पुरोहित ‘कागद’
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