कुम्हार माटी गूंदी

आपरी चाक पर घुमाई गोळ-गोळ

बणायो घड़ो, मटकी, ठीबो

पण बण कीं लाळच कर लियो

न्याही पकाण में

मजूरां माटी गूंदी

सांचै में भरी अर ईंटा थापी

पण बां कीं लाळच कर लियो

भट्टो बाळती बगत बळीतै रो

सेठां मकान मांड्यो

लोह राछ रा अंगड़-बंगड़ स्सो कीं

लगाया भींता मांय

पण बां कीं लाळच कर लियो

घर री छात घालतां थकां सीमट रो

कवि, कविता गोखी

दीमाक दीमक में खाको बणायो

कागज माथै मांडी

पण बण कीं लाळच कर लियो

बेगी-बेगी लिखण रो

पण कैभा कैयीजै-

कचायत तो कचायत हुवै

बा छात में हुवै कै

बरतण-भांडा, ईंटा या कविता में।

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुणियोड़ी ,
  • सिरजक : पूनमचंद गोदारा ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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