नदियाँ कै सागै बहैर आयी
कनारा पै जमी गार
म्हाँ मिनखां की केई सभ्यता
आपणा भीतर दबाया छै
कदी कान लगा’र सुणो
गार रोवै छै
ई सूं बणी पूरी कै पूरी बस्तियाँ
बखरगी ई का घणा भीतर
ई कै उपरै लहराती फसळां
अब हेर्’या बी न मलै
म्हाँ मिनखां को काई छै
म्हाँ तो हेर ई लै छां संदी चीजां को
काई न काई विकल्प
पण गार जाणै छै कंकरीट सूं दब’र
आपणी पहचाण मटबा को दुःख
पक्का घाट बनाबा वाळा
काची गार का कनारा नै
अब दळदळ ई तो मानै छै।