गूंग थांरी

फौड़ा घालसी

कदैई थांनै

मिनख नै मार-मार

मोदीजो भलांई मन में

पण

काल थे खुद

सोध-सोध हार जावोला

लाधैला नीं मिनख रौ जायौ

कठैई थांनै।

थारै च्यारूंमेर

उछाळा मारै जिकौ हरख रौ समंदर

देखतां-ई-देखतां

सूख जावैला कोनीं मानौ थे आज

पण परतख देखौला

काल थे खुद झुरौला

आं मिनखां खातर।

स्रोत
  • पोथी : जातरा अर पड़ाव ,
  • सिरजक : सांवर दइया ,
  • संपादक : नंद भारद्वाज ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी ,
  • संस्करण : प्रथम