इणरै इज वास्तै तै करै

सगळी योजनावां

कागद सूं तिजोरी तांई री जातरा

बासी रोटी

मोटौ कपड़ौ

अर छोटौ मकान देवण सारू

तै व्है बरसां री मैणत री मातरा।

मैणत री मार मरै मानखौ

निजर बचा कुत्तरड़ा लै भागे रोटी

(पागल अर खीज्योड़ा तोड़लै बोटी)

तूटोड़ै टापरियै तिड़क्योड़ौ ऊभौ

पैर्यां बस फाट्योड़ी धोती

घर-भर री आंख्यां रा समदर में

निपजै दुख मोती।

बरसातां भीतां में ज्यूं मरै पाणी

जरूत री आंख्यां में

त्युं मरै उम्मीदां

भींतां रा लेव ज्यूं खिरतौ रैवै बगत

अर उमर री दुकान ऊठण तांई

कमावतौ रैवै

तकलीफां रा सिक्का

अर आस्वासणां री भविष्य निधि।

इज तौ बणै भीड़ रौ हिस्सौ

वांरौ मन बिलमावण

भोळप रौ किस्सौ

इण भोळी भीड़ रै बिच्चे सूं

करतब बतावतौ निकळ जावै

करामातियां रौ झुंड

तद आंनै ठा पड़ै’क

आंरी जेबां में व्हेगा है तीणा

आं जीभां आय जमै अेक पुड़त रेत री

गम जावै

आंरै अर वांरै बिच्चै

पगडांडी हेत री

यूं लागै आंनै—

पीयगा वै आसावां

सांसांवां पीयगा

वै मिनख, मिनख नीं

सरप हा पीणा।

निस्कारां अर सिसकारां री

सळवटां में सिंवटगौ

मून में मौजूदगी व्हेगी

निकळगा बगत रा असवार उपरां कर

उडतां धूड़ धोळा

चैरै उतरी सळवटां सगळी

उमर रै पगस में ही

तो जांणै किण उडीक में

आंख्यां अटकी आस

सांस रा ताणा ताण्यां तणियोड़ी ही

आखी उमर अंवेरी अगनी

अंतस री ऊंडी कोटड़ियां

जगियोड़ी ही।

जागी

मून में मौजूदगी जागी

रगत बदली देह अर

काळजै सूं काळजै में

कळम लागी आग री।

बाप री जवान खुली, बेटा रा कान

'सुण म्हारा प्राण! बता,

क्यूं कोनीं बदळ्यौ जीवन रौ ढंग

क्यूं नीं भर सकूं घर रौ पेट

क्यूं नीं ढक सकूं इणरौ डील

बता, कठै रैयी म्हारै सूं ढील!

म्हैं तो बस इत्तौ समझ्यौ हूं—

म्हारै इज वास्तै हा सगळा हाका

म्हारै इज नांव हुया

लूट-खोस, चोरी अर डाका

म्हारै सारू काटण नै रैयगा फाका!

देख म्हारा जीव, म्हारा पूत!

वां मौज-मगन लोगां नै देख

मिनख रूप धार्यां वै ऊभा जमदूत

वांरी दियोड़ी

म्हारी इण लीर-लीर सपनां री

चादर नै देख

नीं लागै अबै म्हासूं इण माथै टांका!

नवी कलम

जड़ा पकड़ व्हेगी मजबूत

चुप हुयां बाप रै यूं बोल्यौ पूत—

‘जावण दो बाबा, यूं मत नां कळपौ

म्हैं आंनै जाणगौ

अै पैली कर अंधारौ

पछै करै पल भर रौ पळकौ

चकाचूंध आंख्यां कर

निजर बचा झटकै सूं

लै भागै सैं कीं भर झपटौ

पण परवा नीं

आदू अगन पीढ़ियां व्हेती

थांरै सूं म्हारै में उतरी

म्हारै सूं जुंझारू रूप पसरैला

धीरै-धीरै बगत वायरौ

बदळ रैयो है

थां माथै रा हमलावां री

दिसा बदळगी।

अबै निसाणौ म्हैं व्हेगौ हूं

आंनै उत्तर म्हैं देवूंला

अबै बतावूंला दुनिया किणरै सारू

धरती नै सिणगारै जिगरी धरती बाजै

आप करौ विश्राम

बाबा, म्हैं कर सूं संग्राम

अबै म्हैं जावूं

नवी कलम रै नवै रंग नै

इतिहासां दरसावू

म्हैं जावूं।'

स्रोत
  • पोथी : अंवेर ,
  • सिरजक : पारस अरोड़ा ,
  • संपादक : पारस अरोड़ा ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर ,
  • संस्करण : पहला संस्करण
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